For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

थक गया हूँ

चाहता हूँ

तनिक सा विश्राम ले लूँ

तोड़कर मैं अर्गला

नश्वर वपुष की

किन्तु संकट है विकट

ढूंढें नही मिलता मुझे 

इस ठौर पानी

एक चुल्लू साफ़

सिर्फ मरने के लिए

(मौलिक  अप्रकाशित) 

Views: 614

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on July 10, 2019 at 4:40pm

आपकी इस सुन्दर रचना से न जाने क्यूँ मुझको बहादुर शाह ज़फ़र जी की याद आई ... दो गज़ ज़मीं भी न मिली दफ़न के लिए ...।हार्दिक बधाई, भाई गोपाल नारायन जी , बहुत ही सुन्दर ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 8, 2019 at 11:49am

आ० तिवारी जी 

यह महज इत्तेफाक है की मेरी कविता में कुछ सीमा तक २१२२ का स्वतः निर्वाह हुआ पर मैंनेयह रचना बहर में नही की i यदि ऐसा  होता तो आपको चार पंक्तिया पूरे बहर में मिलती जैसे मेरी यह रचना है -

युद्ध छल से ही किया लेकिन न रण के दांव सीखे

 और अब तक शेर के  तुमको नहीं हैं  दांत  दीखे

 हार रावण की सभा  हमसे गयी  थी बहुत पहले

 तुम  पछाडोगे   हमारे  पाँव  अंगद  के सरीखे ?

पर आपने रचना पर इतना ध्यान दिया i इस हेतु आपका आभारi 

Comment by Ajay Tiwari on July 8, 2019 at 8:25am

आदरणीय गोपाल जी, महादेवी जी का गीत फ़ाइलातुन (2122) की आवृत्ति पर आधारित है (फ़ाइलातुन x 4). इस छंद (बह्रे रमल) का इस्तेमाल उन्होंने अपने एक और मशहूर गीत 'जाग तुझको दूर जाना' में भी किया है. आपकी कविता भी बहुत हद तक 'फ़ाइलातुन' की आवृत्ति पर आधारित है.

मैंने जो परिवर्तन किये हैं वो 'फ़ाइलातुन' को ही आधार मान कर किये हैं : 

किन्तु संकट (फ़ाइलातुन) है विकट ढूं (फ़ाइलातुन) ढें नही मिल (फ़ाइलातुन) ता कहीं इस(फ़ाइलातुन) ठौर मुझको (फ़ाइलातुन)

अब तो मरने(फ़ाइलातुन) के लिए भी(फ़ाइलातुन) एक चुल्लू (फ़ाइलातुन) साफ़ पानी (फ़ाइलातुन)

'स्नेह निर्झर बह गया है 

रेत ज्यूँ तन रह गया है' 

निराला की ये पंक्तियाँ भी इसी छंद पर आधारित हैं.

सादर 

Comment by नाथ सोनांचली on July 7, 2019 at 6:17pm

आद0 गोपाल जी सादर अभिवादन। बेहतरीन रचना पर आपको बधाई देता हूँ

Comment by Samar kabeer on July 7, 2019 at 3:55pm

जनाब गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आदाब,अच्छी कविता लिखी आपने,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 6, 2019 at 7:02pm

आ० अजय तिवारी  जी चकित हूँ की १४,१४ मात्राओं में पिरोये महादेवी की गीति रचना से आपने इसकी तुलना कर डाली  i पहली बात तो यह की मैंने छंद रचना, की ही नहीं   i यह तो  सीधी-सीधी समकालीन अतुकांत  लघु कविता है I आपने जो परिवर्तन किया है  उसका प्रति  पंक्ति मात्रिक विन्यास इस प्रकार होगा - १२, 1४ , ९, ,१५ और १४  ऐसा   मात्रिक विन्यास किस छंद में संभव है , मुझे ज्ञात नहीं i कृपया मेरी जानकारी के लिए अपने कथन को और अधिक स्पष्ट करेंगे तो मैं अवश्य  ही अनुग्रहीत हूँगा I  सादर I   

Comment by Ajay Tiwari on July 6, 2019 at 12:07pm

आदरणीय गोपाल जी, आपकी इस कविता के छंद ने 'पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला' की याद दिलाई .

'किन्तु संकट है विकट

ढूंढें नही मिलता मुझे 

इस ठौर पानी

एक चुल्लू साफ़

सिर्फ मरने के लिए'

आखिरी पंक्ति छंद से बाहर है. वैसे इस काव्य-रूप में छंद का अनुपालन अनिवार्यता नहीं है. लेकिन इसे भी अगर छंद के अनुरूप किया जा सके तो बेहतर होगा. मस्लन :

किन्तु संकट है विकट

ढूंढें नही मिलता कहीं

इस ठौर मुझको

अब तो मरने के लिए भी

एक चुल्लू साफ़ पानी

एक प्रभावशाली व्यंग-कविता के लिए हार्दिक बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service