दिन ढला तो शाम हुई, शाम ढली तो रात,
रात जो आई तो ख़ुश हुए, चाँद और तारे हज़ार||
तारे बोले ऐ चाँद,
तरसते रहते दिनभर, हम तेरे दीदार को,
पर सूरज भैया को कैसे धमकाएँ,
राज करते धरती और आसमान पर जो||
दिनभर यही सोचते हैं हम कब यह सूरज जाएगा,
और हमें लाखों तारों की एक अप्सरा
चाँद का दीदार हो पाएगा||
सबसे ज़्यादा जलन हमको इस धरती से है,
जो पास हमेशा तुम्हारे होती है,
अपने इशारों पर तुमको वो, रोज़ यूँ ही घुमाती है||
यूँ तो लाखों चाहने वाले होंगे तुम्हारे इस धरती पर,
पर हम भी कुछ कम नहीं जो जो लटका करते,
हमेशा इस आकाश पर||
एक तारा कहता है,
हम भी तो सितारे हैं, चमकना काम हमारा है;
पर चाँद तेरी बात तो कुछ और ही है, तेरी भोली सी कोमल-सी जो कशिश है इसे महसूस कर
टिमटिमाता हर एक सितारा है||
अभी तो तेरी शीतल मंदाकिनी में डूबे ही थे की बस दिन के आने का समय हो गया,
रात ने दिन का स्वागत किया और विदाई ली||
हम तो यूँ ही लटके रहेंगे तेरे इंतज़ार में,
तू आना ज़रूर शाम होने के बाद अपने उसी एहसास में.||
मौलिक व् अप्रकाशित
Comment
आदरणीय समर कबीर सर जी हार्दिक आभार ,आपको "चाँद सितारे " पसंद आयी बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय लक्ष्मण जी हार्दिक आभार
मुहतरमा प्रतिभा पाण्डेय जी आदाब,अच्छी कविता लिखी आपने,बधाई स्वीकार करें ।
आ. प्रतिभा बहन उत्तम रचना हुई है । हार्दिक बधाई।
आदरणीय विजय निकोरे जी हौसला अफजाही के लिए हार्दिक आभार
आपकी कविता बहुत ही अच्छी लगी। हार्दिक बधाई, आदरणीया प्रतिभा जी।
प्रणाम आदरणीय सुशिल सरना जी ,"चाँद सितारे " सृजन की हौसला अफजाही के लिए तहे दिल से धन्यवाद ,आभार
वाह आदरणीया जी वाह आपके सृजन की ये शैली खूब मन भायी। आपसी वार्ता के रूप में सुंदर प्रस्तुति ... हार्दिक बधाई।
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