For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रब है ज़रूर आपको दिखता भले न हो (६१)

ग़ज़ल(२२१ २१२१ १२२१ २१२ )

.

रब है ज़रूर आपको दिखता भले न हो
हर सू है नूर आपको दिखता भले न हो
**
होता ज़रूर है किसी में कम किसी में ख़ूब
दिल का गुरूर आपको दिखता भले न हो
**
जोश-ओ-जुनून से किये हासिल कई मुक़ाम
होता फ़ितूर आपको दिखता भले न हो
**
मौज़ूदगी है उनकी तसव्वुर में आपके
जलवा-ए-हूर आपको दिखता भले न हो
**
अनजान कोई रह सके क्या उसके दर्द से
दिल चूर चूर आपको दिखता भले न हो
**
हर वक़्त डोलता रहे ख़ुशियों के आस पास
ये ग़म हुज़ूर आपको दिखता भले न हो
**
आँखों का ,लब का और शराब-ओ-शबाब का
होता सुरूर आपको दिखता भले न हो
**
मुफ़्लिस के घर में भी मिले हीरा कभी कभी
वो कोहिनूर आपको दिखता भले न हो
**
इलज़ाम तो लगा दिया है आपने 'तुरंत '
अपना क़ुसूर आपको दिखता भले न हो
**
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी |

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 421

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on September 10, 2019 at 11:27am

//जलव-ए-हूर से मात्रा गड़बड़ होती है ,क्या चेहरा-ए-हूर किया जा सकता है ?//

"चहर-ए-हूर" में भी वही गड़बड़ है,कुछ और सोचें ।

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on September 9, 2019 at 6:17pm

आदरणीय Samar kabeer साहेब  , आपकी हौसला आफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया | आप सही कह रहे हैं ,मैंने तो यही समझ कर लिखा है कुछ लोगों में कुछ प्राप्त करने का फितूर होता है जो दिखता नहीं | जलव-ए-हूर से मात्रा गड़बड़ होती है ,क्या चेहरा-ए-हूर किया जा सकता है ? सादर नमन | 

Comment by Samar kabeer on September 9, 2019 at 3:04pm

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'जोश-ओ-जुनून से किये हासिल कई मुक़ाम 
होता फ़ितूर आपको दिखता भले न हो'

इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं है,देखियेगा ।

'जलवा-ए-हूर आपको दिखता भले न हो'

इस मिसरे में सहीह शब्द "जलव-ए-हर' है,देखियेगा ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
14 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service