ग़ज़ल(२२१ २१२१ १२२१ २१२ )
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रब है ज़रूर आपको दिखता भले न हो
हर सू है नूर आपको दिखता भले न हो
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होता ज़रूर है किसी में कम किसी में ख़ूब
दिल का गुरूर आपको दिखता भले न हो
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जोश-ओ-जुनून से किये हासिल कई मुक़ाम
होता फ़ितूर आपको दिखता भले न हो
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मौज़ूदगी है उनकी तसव्वुर में आपके
जलवा-ए-हूर आपको दिखता भले न हो
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अनजान कोई रह सके क्या उसके दर्द से
दिल चूर चूर आपको दिखता भले न हो
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हर वक़्त डोलता रहे ख़ुशियों के आस पास
ये ग़म हुज़ूर आपको दिखता भले न हो
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आँखों का ,लब का और शराब-ओ-शबाब का
होता सुरूर आपको दिखता भले न हो
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मुफ़्लिस के घर में भी मिले हीरा कभी कभी
वो कोहिनूर आपको दिखता भले न हो
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इलज़ाम तो लगा दिया है आपने 'तुरंत '
अपना क़ुसूर आपको दिखता भले न हो
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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी |
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Comment
//जलव-ए-हूर से मात्रा गड़बड़ होती है ,क्या चेहरा-ए-हूर किया जा सकता है ?//
"चहर-ए-हूर" में भी वही गड़बड़ है,कुछ और सोचें ।
आदरणीय Samar kabeer साहेब , आपकी हौसला आफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया | आप सही कह रहे हैं ,मैंने तो यही समझ कर लिखा है कुछ लोगों में कुछ प्राप्त करने का फितूर होता है जो दिखता नहीं | जलव-ए-हूर से मात्रा गड़बड़ होती है ,क्या चेहरा-ए-हूर किया जा सकता है ? सादर नमन |
जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
'जोश-ओ-जुनून से किये हासिल कई मुक़ाम
होता फ़ितूर आपको दिखता भले न हो'
इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं है,देखियेगा ।
'जलवा-ए-हूर आपको दिखता भले न हो'
इस मिसरे में सहीह शब्द "जलव-ए-हर' है,देखियेगा ।
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