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अरसा गुज़र गया है कोई गुफ़्तुगू नहीं (६२ )

अरसा गुज़र गया है कोई गुफ़्तुगू नहीं 
ख़त भी नहीं ख़बर नहीं है जुस्तजू नहीं 
***
दरिया-ए-इश्क़ जो कि उफ़नता था थम गया
यूँ लग रहा है जैसे कि दिल में लहू नहीं
***
ख़ामोश ताकते हैं दरीचा तिरा सनम
हालाँकि इल्म है कि वहां पे भी तू नहीं
***
यादें हैं ख्वाब भी है तस्सवुर भी है तेरा
अफ़सोस बस यही है कि तू रू ब रू नहीं
***
इतनी शराब पी तिरी आँखों के जाम से
ऐसा असर है आज मैं अहल-ए-सुबू नहीं 
***
रिश्ता-ए-इश्क़ यार अब उधड़ा है इस क़दर
शायद कभी हयात में होगा रफ़ू नहीं
***
क्यों सोगवार हम रहें होनी तो हो गई 
थे दोस्त कल भी आज भी हम तो अदू नहीं 
***
दिल को सुकून है यही ऐ कल के हमसफ़र
अब तक तिरी नज़र में हूँ बे-आबरू नहीं
***
बर्फ़ाब से हुए सभी अरमान अब 'तुरंत'
इस ज़ीस्त में बची है कोई आरज़ू नहीं
***
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' बीकानेरी.
(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on September 20, 2019 at 9:30pm

हार्दिक आभार बृजेश कुमार बृज जी 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 19, 2019 at 7:22pm

वाह वाह आदरणीय क्या ही शानदार ग़ज़ल कही है...बधाई

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