व्यथित हृदय
अनुपम सृजन सृष्टि की बेटी
बेटी को ना ठुकराएं।
प्यार मुहब्बत की निधि बेटी
हाथ बढ़ाकर अपनाएं।।
बेटी अगर अनादृत होगी
जग कलुषित हो जाएगा।
आन मान सम्मान धरा पर
कहीं नहीं बच पायेगा।।
मृदुल भाव मधु सदृश बेटियाँ
जग रोशन नित करतीं हैं।
अंतर्मन के हर विषाद तम
सुखद अमिय रस भरतीं हैं।।
सस्मित सुरभि लुटाकर हर पल
जग मधुमय कर देतीं हैं।
सदा अंक में प्रदीप्त करके
हर बाधा हर लेतीं हैं।।
व्यथित हृदय कटु गरल पी रही
निर्मम नर हैवानों से।
ज्वलित गलित नित रोदन करतीं
क्रूर व्याल शैतानों से।।
पशुता से विक्षत जो होतीं
उनको आज बचाना है।
रहें सुरक्षित बहन बेटियां
अपना फर्ज निभाना है।।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ.भाई, छोटेलाल जी, अच्छी रचना हुई है हार्दिक बधाई।
परमादरणीय समर साहब जी सादर अभिवादन आपके उत्साह वर्धन से एक नयी ऊर्जा मिलतीहै ,आपका दिल से आभार
जनाब डॉ. छोटेलाल सिंह जी आदाब,बेटियों पर बहुत अच्छी रचना लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय बृजेश ब्रज जी उत्साह वर्धन के लिए दिल से आभार
आदरणीय सत्यम जी उत्साह वर्धन के लिए दिल से आभार ,कोशिश करूँगा
अनुपम अमिट भावों को समेटती हुई रचना....हार्दिक बधाई
आ. छोटेलाल भाई जी, आपकी कविता अतिसुन्दर और सार्थकता की दृष्टि से भी उत्तम है. आपने कभी गीत लिखा है क्या? यही बात यदि आप गीत के माध्यम से करते तो और भी ज्यादा प्रभावित हो सकता था. फिलहाल इस कविता के लिए हार्दिक बधाई. शुभ शुभ
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