"ख़ामोश!" एक बलात्कार पीड़िता और सरेआम उसकी हत्या करने वाले युवकों के बाद बारी-बारी से माइक पर उसने मशहूर नेताओं-अभिनेताओं और पुलिसकर्मियों की मिमिक्री करते हुए कहा, "कितने आदमी थे!"
"साहब, ती..ई...तीन थे!"
"वे तीन थे ... और ये सब तीस-चालीस...ऐं! लानत है... तुम लोगों की ख़ामोशी पर!"
"साला... एक मच्छर इस देश के आदमी को हिजड़ा बना देता है!"
"साहब... मच्छर! .. मच्छर बोले तो... पैसा, डर, पुलिस, नेता, क़ानून या स्वार्थ!..है न!"
"कोई शक़!"
'नारी सशक्तिकरण और बलात्कार' विमर्श पर एक आयोजन में दर्शक इस प्रस्तुति पर पिछली बार से अधिक ज़ोर से देर तक तालियाँ बजाते रहे! विशिष्ट अतिथि दीर्घा में बैठे किन्नर सब तरफ़ निगाहें घुमाते हुए एक-दूसरे की ओर देख कर मुस्कराने लगे।
ठीक तभी ...
"हाss हाss हाss हाss हाsss " वह माइक पर रावण की मिमिक्री करते हुए बोला, "मैं कालग्रस्त नहीं, अद्यतन हूँ.. कालजयी हूँ! मैं दशानन नहीं जी, नयी सदी का शतानन... सहस्त्रानन हूँ... विकासोन्मुखी हूं... हा हा हा हा!"
दर्शक ख़ामोश हो गये!
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदाब। आपकी यहाँ उपस्थिति हमें गौरवान्वित करती है। अनुमोदन और प्रोत्साहन के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब समर कबीर साहिब।
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदाब। मेरी रचना के पटल पर त्वरित उपस्थिति और राय साझा करते हुए मुझे यूं प्रोत्साहित करने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब तेजवीर सिंह साहिब। विजयादशमी पर्व पर हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं।
हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी साहब जी।प्रतीकों के माध्यम से समाज में व्याप्त अनगिनत बुराइयों को सशक्त लघुकथा के रूप में प्रस्तुत करने का सराहनीय कदम।
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