(१२२२ १२२२ १२२ )
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नकेलें ग़म के मैं नथुनों में डालूँ
ख़ुदाया मैं भी कुछ खुशियाँ मना लूँ
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मुझे भी तो अता कर चन्द मौक़े
ख़ुदा मैं भी तो जीवन का मज़ा लूँ
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मुहब्बत में तिरी है जीत पक्की
भला फिर किसलिए सिक्का उछालूँ
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हवा जब खुशबुएँ बिखरा रही है
ख़लल क्यों काम में बेकार डालूँ
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पुराने दोस्त क्या कम हैं किसी से
नये क्यों आस्तीं में मार* पालूँ (साँप )
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मुसीबत आ गई मेहमान बनकर
बता कैसे ख़ुदा घर से निकालूँ
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ख़ुमारी चढ़ गई आँखों की मय की
भला अब होश मैं कैसे सँभालूँ
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तुझे जब क़त्ल करना ही है मुझको
मिरी हिम्मत कहाँ ख़ुद को बचालूँ
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'तुरंत ' आये क़ज़ा अपनी रजा से
नहीं बस में कि जब चाहे बुला लूँ
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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
// मेहमान को वजन में अधिकतर सुख़नवरोँ के कलाम में २२१ ही देखा है २१२१ नहीं | इतना ही नहीं जिस भी लफ्ज़ में दूसरा अक्षर "ह" होता है उसमें उससे पहले के अक्षर की एक मात्रा गिरती हुई देखी है | जैसे मेहरबानी =१२२२ ,मोहलत =२२ , मेहनत =२२ , ज़ेहन =२१ , शोहरत =२२ , आदि | //
भाई 'ह' के पहले वाले अक्षर की मात्रा गिराने की ज़रूरत ही क्या है,आपने इस तरह के जितने शब्द उदाहरण में लिखे हैं,उनका सहीह उच्चारण देखिये:-
'मेहमान'--"महमान"
'मेहनत'--"मिहनत"
''ज़ेहन'--"ज़ह्न"
'शोहरत'--"शुहरत"
आदरणीय Samar kabeer साहेब ,आदाब , आपकी पृरखलुस हौसला आफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया | मेहमान को वजन में अधिकतर सुख़नवरोँ के कलाम में २२१ ही देखा है २१२१ नहीं | इतना ही नहीं जिस भी लफ्ज़ में दूसरा अक्षर "ह" होता है उसमें उससे पहले के अक्षर की एक मात्रा गिरती हुई देखी है | जैसे मेहरबानी =१२२२ ,मोहलत =२२ , मेहनत =२२ , ज़ेहन =२१ , शोहरत =२२ , आदि | कृपया इस बारे में कोई जानकारी है तो प्रदान करें |
आदरणीय Shyam Narain Verma जी , रचना की सराहना के लिए सादर आभार
जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
'मुसीबत आ गई मेहमान बनकर'
इस मिसरे में 'मेहमान' को "महमान" कर लें,क्योंकि 'मेहमान' का वज़्न 2121 है ।
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