For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तूफ़ान जलजलों से नहीं आसमाँ-से हम(६५ )


तूफ़ान जलजलों से नहीं आसमाँ-से हम
फ़ितरत से हैं ज़रूर कुछ अब्र-ए-रवाँ से हम
**
कितना लिए है बोझ ज़मीँ इस जहान का
मुमकिन है क्या कभी कि बनें धरती माँ-से हम
**
दिल तोड़ के वो कह रहे हैं सब्र कीजिए
सब्र-ओ-क़रार लाएँ तो लाएँ कहाँ से हम
**
ये तय नहीं कि प्यार की हासिल हों मंज़िलें
इतना है तय कि जाएँगे अब अपनी जाँ से हम
**
कुछ इस तरह से उनकी हुईं मेहरबानियाँ
खाते हैं ख़ौफ़ आज तलक मेहरबाँ से हम
**
जिस दिन से हमने हिज़्र को अपना बना लिया
आज़ाद तब से हो गए आह-ओ-फुगाँ से हम
**
बेकार है गुमान जमीं ज़र का ज़ीस्त भर
जाएँगे खाली हाथ अगर इस जहाँ से हम
**
यादों के इक हसीन से गिर्दाब में घिरे
चिपके हुए हैं आज तलक आशियाँ से हम
**
बेख़ौफ़ मस्तियाँ न कोई फ़िक्र और बोझ
बचपन के दिन 'तुरंत 'वो लाएँ कहाँ से हम
**
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' बीकानेरी
०८/१०/२०१९
(मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 540

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on October 12, 2019 at 10:29am

भाई बृजेश कुमार 'ब्रज'  जी , आपकी स्नेहिल सराहना के लिए दिल से आभार | 

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on October 12, 2019 at 10:29am

आदरणीय Samar kabeer साहेब , 

आपके आशीर्वचनों  के आगे नतमस्तक हूँ | सादर आभार | पहले मैं ग़ज़ल के ऊपर मापनी लिखता था लेकिन एक एडमिन ने ऐसा न करने का निर्देश दिया तब से बंद कर दिया | भविष्य में आपकी आज्ञा का पालन होगा | 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 12, 2019 at 10:12am

बेहतरीन ग़ज़ल कही है आदरणीय..हरेक् शे'र खूबसूरत हुआ...

Comment by Samar kabeer on October 11, 2019 at 7:19pm

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

एक निवेदन है कि कृपया ग़ज़ल के साथ अरकान भी लिख दिया करें,इससे नए सीखने वालों के लिए आसानी होती है ।

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on October 11, 2019 at 2:07pm

आदरणीय Sushil Sarna जी ,

आपकी सराहनात्मक  प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय तल से आभार एवं सादर नमन |

Comment by Sushil Sarna on October 10, 2019 at 5:09pm

बेकार है गुमान जमीं ज़र का ज़ीस्त भर
जाएँगे खाली हाथ अगर इस जहाँ से हम

वाह आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत जी .... आपकी हर ग़ज़ल खूबसूरत अहसासों का वो मंज़र पेश करती है कि दिल वाह करने को मज़बूर हो जाता है। इस बेशकीमती ग़ज़ल की पेशकश के लिए दिल से मुबारकबाद कबूल फरमाएं सर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
yesterday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service