देखा इतना दर्द दिलों का इस बेदर्द ज़माने में
बस थोड़ा सा वक़्त बचा है सैलाबों को आने में
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अपनापन का जज़्बा खोया और मरासिम भी टूटे
कंजूसी करते हैं सारे थोड़ा प्यार दिखाने में
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उनकी फ़ितरत कैसी होगी ये अंदाज़ा मुश्किल है
जिनको खूब मज़ा आता है गहरी चोट लगाने में
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वादा पूरा करना अपना इस सावन में आने का
वरना दिलबर क्या रक्खा है सावन आने जाने में
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बात दिलों की कहना सुनना सच में प्यार यही तो है
लेकिन सदियाँ लग जाती हैं लोगों को समझाने में
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मान -मनोवल ताने तंज़-ओ-तीर अना सब ज़ायज है
थोड़ा सब्र ज़रूरी होता यार मुहब्बत पाने में
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जाना समझा बूझा परखा तब जाकर ये प्यार किया
फिर भी अब कहता है ज़ालिम-'भूल हुई अनजाने में '
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जिसने आँखों की मय पी ली एक दफ़ा जी भर यारों
उसको क्या दिलचस्पी रहनी है मय में पैमाने में
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लोगों के अफ़साने सुनना अच्छा होता है लेकिन
यार 'तुरंत' मज़ा तब है जब तू भी हो अफ़साने में
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--गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' बीकानेरी
(मौलिक एवं प्रकाशित )
Comment
आदरणीय Dr. Vijai Shanker जी , सादर आभार एवं नमन
आदरणीय Samar kabeer साहेब आपकी हौसला आफजाई के लिए बहुत बहुत आभार एवं सादर नमन
उनकी फ़ितरत कैसी होगी ये अंदाज़ा मुश्किल है
जिनको खूब मज़ा आता है गहरी चोट लगाने में।
बहुत खूब , बहुत सुन्दर प्रस्तुति , आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत जी , बधाई , सादर।
जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय बसंत कुमार शर्मा जी रचना की सराहना के लिए सादर आभार एवं नमन
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