अर्चन करने सूर्य का, चले व्रती सब घाट
छठ माँ के वरदान से, दमके खूब ललाट
दमके खूब ललाट, प्रकृति से ऊर्जा मिलती
हो निर्जल उपवास, मगर मुख आभा खिलती
शाम सुबह देें अर्घ्य, करें यश बल का अर्जन
चार दिनों का पर्व, करें सब मन से अर्चन।।
पूजा दीनानाथ की, डाला छठ के नाम
अस्त-उदय जब सूर्य हों, करते सभी प्रणाम
करते सभी प्रणाम, पहुँच कर नदी किनारे
भरकर दउरा सूप, अर्घ्य दें हर्षित सारे
प्रकृति प्रेम का पर्व, नहीं है जग में दूजा
अन्न कूट फल फूल, चढ़ाकर होती पूजा।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आद0 भाई सतविंदर जी सादर अभिवादन। आपकी प्रशंशा मनोहारी है। हृदय तल से आभार आपका।
आदरणीय सुरेन्द्रनाथ जी सादर नमन, सुन्दर कुण्डलिया
आद0 समर कबीर साहब सादर प्रणाम,, रचना पोस्ट करने के बाद से ही आपकी प्रतिक्रिया का मुझे सदैव ििएंटीजार रहता है। आपकी बारीक नजर रचना के सुधारने में अहम रोल अदा करता है। रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए कोटिश आभार व्यक्त करता हूँ। सादर
जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह जी आदाब,अच्छा कयडलिया छन्द लिखा आपने,बधाई स्वीकार करें ।
आ. भाई सुरेंद्र जी, छठ पर्व पर सुंदर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई।
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