घर में किसी बुजुर्ग ने, दिया आप को नाम
नाम बड़ा अब कीजिये, करके अच्छे काम
करके अच्छे काम, बढ़े कद जिससे अपना
जग हित हो हर श्वांस, बड़ा ही देखें सपना
पद वैभव सम्मान, ख्याति हो दुनिया भर में
उत्तम जन कुलश्रेष्ठ, आप ही हों हर घर में।।
जह्र फिजा में है घुला, नगर शहर या गाँव
बाग बगीचे काट कर, खोजे मानव छाँव
खोजे मानव छाँव, भला अब कैसे पाए
जब खुद गड्ढा खोद, उसी में गिरता जाए
धुन्ध धुँआ बारूद, बहें मिल खूब हवा में
कैसे लें अब साँस, घुला जब जह्र फिजा में।।
मास्क लगाकर सब चलें, हर कोई हलकान
वायु प्रदूषण यूँ बढ़ा, मिलता नहीं निदान
मिलता नहीं निदान, श्वांस लें कैसे खुलकर
धूम धूल बारूद, हवा में उड़ती घुलकर
स्वयं करे जब धुंध-धुँआ अवशिष्ट जलाकर
हो तब हाहाकार, चलें सब मास्क लगाकर।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
इस सुन्दर रचना के लिए बधाई, मित्र सुरेन्द्र जी।
बेहतरीन कुण्डलिया और सार्थक सन्देश भी. बहु बहुत बधाई आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी!
आद0 अग्रज समर कबीर जी सादर प्रणाम। रचना पर आपकी उपस्थिति का बेसब्री से इन्तिजार रहता है। आपकी प्रतिक्रिया परिष्करण के लिए बेहद सटीक होती है। आभार आपका। सादर
जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह जी आदाब,अच्छे कुण्डलिया छन्द लिखे आपने,बधाई स्वीकार करें ।
आद0 लक्ष्मण धामी जी सादर अभिवादन। आपने रचना पढ़ी और अपनी खूबसूरत प्रतिक्रिया से मुझे पुरस्कृत किया,, हृदय तल से आभार आपका।
आद0 फूल सिंह जी सादर अभिवादन।रचना पर आपने वक़्त दिया। और रचना अच्छी लगी,, इसके लिए हृदय तल से आभारी हूँ। सादर
आ. भाई सुरेंद्र सिह जी, उत्तम कुंडलियाँ हुई हैं । हार्दिक बधाई।
एक बहतरीन प्रस्तुति के लिए बधाई
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