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करके वादा,
किसी से न कहेंगे,
दिल का दर्द मेरे जान लिया।
ढोंग था सब,
तब समझे हम कि,
महफ़िल में सरे-आम बदनाम हो गए।...........1

पहली नज़र में ही उनपर,
हम दिल अपना हार बैठे,
कहना कुछ चाहा था,
कह कुछ और गए।.......... 2

अक्सर देखा है हमने,
उनको रंग बदलते हुए,
पर हैरान हैं कि,
कोई तो पक्का होता।.......... 3


मौलिक व् अप्रकाशित।

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Comment by Usha on November 20, 2019 at 8:07pm

आदरणीय लक्ष्मी धामी 'मुसाफिर' जी, क्षणिकायें आपको पसंद आयीं। हृदय से आभार। सादर। 

Comment by Usha on November 20, 2019 at 8:05pm

आदरणीय विजय निकोरे जी, क्षणिकाओं पर बधाई प्रेषित करने हेतु आभार। सादर।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 20, 2019 at 4:31am

आ. उषा जी, अच्छी प्रस्तुति हुई है । हार्दिक बधाई।

Comment by vijay nikore on November 19, 2019 at 12:20am

इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई, मित्र ऊषा जी।

Comment by Usha on November 18, 2019 at 8:44am

आदरणीय समर कबीर साहब, मेरी क्षणिकाएँ आपको पसंद आयी। हृदय से आपका आभार। जी ज़रूर सर, 'मेरे और हमने' वाली बात पर मैं अवश्य ग़ौर करुँगी। आपसे हर बार कुछ नया सीखने का सौभाग्य प्राप्त होता है, जिससे और बेहतर कर पाती हूँ अतः आपकी टिप्पणी का इंतज़ार रहता है। आभार। सादर।

Comment by Usha on November 18, 2019 at 8:39am

आदरणीय विजय शंकर सर, मेरी क्षणिकाएँ आपको पसंद आयी। उनपर आपके द्वारा दी गयी टिप्पणी से हर्ष हुआ कि भावों का प्रदर्शन उस प्रकार हो पा रहा है जिसके लिए में प्रयत्नशील थी। हृदय से आपका आभार। सादर।

Comment by Dr. Vijai Shanker on November 16, 2019 at 9:49pm


आदरणीय समर कबीर साहब , नमस्कार , बहुत बहुत धन्यवाद ! आपके इसी प्रकार तरह मार्ग - दर्शन से हम फ़ारसी और अरबी के शब्दों का सही अर्थ जान लेंगे। कुछ भी लिखने वालों को शब्द का सही प्रयोग अवश्य जानना चाहिए। मैंने तंज शब्द को हिंदी के शब्द कटाक्ष का पर्याय समझ लिया था। ह्रदय से साभार। सादर।

Comment by Samar kabeer on November 16, 2019 at 2:34pm

//व्यंग भी है , तंज भी है//

जनाब डॉ. विजय शंकर जी,अरबी भाषा में 'व्यंग' को "तंज़" कहते हैं ।

Comment by Samar kabeer on November 16, 2019 at 2:28pm

मुहतरमा ऊषा जी आदाब, अच्छी क्षणिकाएँ लिखीं आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

'करके वादा,
किसी से न कहेंगे,
दिल का दर्द मेरे जान लिया।
ढोंग था सब,
तब समझे हम कि,
महफ़िल में सरे-आम बदनाम हो गए'

इस क्षणिका की तीसरी पंक्ति में 'मेरे' और 5वीं पंक्ति में 'हम' शब्द उचित नहीं,तीसरी पंक्ति में 'मेरे' की जगह "हमने" शब्द उचित होगा, ग़ौर करें ।

Comment by Usha on November 15, 2019 at 6:09pm

आदरणीय सुशील सरना जी। मेरी क्षणिकाओं पर आपकी सुन्दर-सकारात्मक टिप्पणी समेरे लिए हर्ष हर्ष व् प्रोत्साहन का विषय है। साभार।

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