शोहरतों का हक़दार वही जो,
न भूले ज़मीनी-हकीक़त,
न आए जिसमें कोई अहम्,
न छाए जिसपर बेअदबी का सुरूर,
झूठी हसरतों से कोसों दूर,
न दिल में कोई फरेब,
न किसी से नफ़रत,
पलों में अपना बनाने का हुनर,
ज़ख्मों को दफ़न कर,
सींचे जो ख़ुशियों को,
चेहरे पर निराला नूर,
आवाज़ में दमदार खनक,
अंदर भी…
ख़ूबसूरत मंच है, ज़िन्दगी,
हर राह, एक नया तज़ुर्बा,
ख़ुदा की नेमतों से,
मिला ये मौका हमें,
कि बन एक उम्दा कलाकार,
अदा कर सकें अपना किरदार,
कर लें वह सब,
जो भी हो जाए मुमकिन,
खुद भी मसर्रत हासिल रहे,
औरों के चेहरे की ख़ुशी भी कायम रहे,
और न रहे रुख़सती पर यह मलाल,
कि हम क्या कुछ कर सकते थे,
चूक गए, और वक़्त मिल जाता,
तो ये कर लेते, कि वो कर लेते,
इस मंच को जी लें हम भरपूर,
और हो जाएँ फना फिर सुकून से
एक ख़ूबसूरत मुस्कुराहट के…
Added by Usha on December 2, 2019 at 11:27am — 7 Comments
सुना था मसले,
दो तरफा हुआ करते हैं,
पर हैरानगी का आलम तब हुआ कि,
जब वे अकेले ही ख़फा हो, बैठ गए।
हमने भी यह सोच कर,
ज़िक्र न छेड़ा कि,
ख़ामोशी कई मर्तबा,
लौटा ही लाती है, मुहब्बते-इज़हार,
पर अफसोस कि,
पासा ही पलट गया,
अपना तो मजमा लग गया,
और वे जो उल्फ़तों के किस्से गढ़ा करते थे,
नफ़रतों की मीनारें खड़ी करते चले गए।
मौलिक व् अप्रकाशित।
Added by Usha on November 26, 2019 at 9:00am — 14 Comments
क्षणिकाएं।
इतने बड़े जहां में,
क्यों तू ही नहीं छिप सका,
ऐसा क्या खास तुझमें हुआ किया,
कि, हर नए ज़ख्म पर,
नाम तेरा ही छपा पाया।............. 1
सुना-सुना सा लगता है,
वो सदा है उसके वास्ते,
जीया-जीया सा सच है,
वो खुद ही है खुद के वास्ते,
हाँ, और कोई नहीं, कोई नहीं।............. 2
कहते…
Added by Usha on November 24, 2019 at 10:18am — 14 Comments
दिन ढलते, शाम चढ़ते,
उसका डर बढ़ने लगता है,
क़िस्मत, दस्तक भी देगी और
भीनी यादें तूफान भी उठायेंगी ,
फिर भी होगा कुछ भी नया नहीं,
बस यह अहसास कराते हुए
कि वो किसी और पर मेहरबान है,
उसके पास से धीरे से सरक जाएगी
और चूम लेगी किसी और को।.............1
अटपटा दीवानापन सा,
महसूस तू करवाता है,
हर नए दिन,
हर नई शाम,
यकीन दिलाकर,
तू सिर्फ उसका है,
बाहों में किसी और की,
चला जाता है ।............…
Added by Usha on November 18, 2019 at 8:30am — 5 Comments
दोनों पति-पत्नि अपने लव-कुश के साथ खुश थे। माताजी और पिताजी इस छोटे से परिवार में खुश तो थे लेकिन और पैसा कमाने के लिए बेटे समीर को दिन-रात औरों के बेटों की कहानियाँ सुना-सुना ताना देते रहते। रोज़ सुबह और शाम डायनिंग टेबल पर बैठ, एक बयौरा सा देते हुए बताया करते कि फलां के बेटे की तनख़्वाह इतनी हो गयी, फलां के बेटे ने फलैट बुक करवा दिया और फलाने ने तो कैश पेमैंट पर बड़ी गाड़ी खरीद ली।
ये सब सुन-सुनकर समीर परेशान हो गया और अपने ही घर में बेइज्जत होने से थककर बाहर जाने की तैयारी करने…
Added by Usha on November 15, 2019 at 9:00am — 4 Comments
करके वादा,
किसी से न कहेंगे,
दिल का दर्द मेरे जान लिया।
ढोंग था सब,
तब समझे हम कि,
महफ़िल में सरे-आम बदनाम हो गए।...........1
पहली नज़र में ही उनपर,
हम दिल अपना हार बैठे,
कहना कुछ चाहा था,
कह कुछ और गए।.......... 2
अक्सर देखा है हमने,
उनको रंग बदलते हुए,
पर हैरान हैं कि,
कोई तो पक्का होता।.......... 3
मौलिक व् अप्रकाशित।
Added by Usha on November 13, 2019 at 7:09pm — 13 Comments
काव्य-रुपी शब्दों का विनम्र समर्पण कविवर सुमित्रानंदन प॔त जी की कविता "कहो, तुम रूपसी कौन?" से प्रेरित हो मेरे द्वारा उनके सम्मान में किया गया एक प्रयास।
कहो, तुम पुरुष कौन?
निशक्त बतलाओ तो, क्या नाम दूँ तुम्हें ?
जान लो, पहचान लो, स्मरण कर लो,
प्रभावशाली, विराट, अखंडित,
अजेय एवं समृद्ध तुम।
हर क्षण रहे सुदृढ़, मजबूत और कर्मठ,
कुछ नहीं नामुमकिन, कठिन, दुष्कर।
प्रत्येक क्षण, रहे करनी सुदृढ़ व मजबूत,
कुछ नहीं नामुमकिन, कठिन, दुष्कर…
Added by Usha on November 2, 2019 at 11:16am — 7 Comments
काश ! ऐसा हो जाये कि,
ज़िंदगी एक पूरा नशा बन जाये,
नशे में सब कुछ माफ हो, और,
ज़िंदगी जीने का मज़ा आ जाये ।
जी लूँ कुछ,
इस तरह कि,
अगले जनम की भी,
चाह न रह जाए।
ऐ दुनियावालों !
क्यों है ये बेइन्तहा मुश्किल?
कि कह सकें-कर सकें वो,
जो दिल करना चाहता हो।
कभी हमें भी था,
भरोसा अपने सपनों पर,
अब अहसास हो गया है कि,
सपने दूसरो के ही र॔ग लाते हैं।
न सोचूँ, न मैं चाहूँ,
न ही…
Added by Usha on October 29, 2019 at 12:30pm — 6 Comments
ज़िम्मेदारियों में उलझी ज़िंदगी,
सरक-सरक कर गुज़रने लगी।
हादसों का सिलसिला ऐसा चला,
उम्र का अहसास गहराता गया।
उड़ने की ख़्वाहिश और सारे ख़्वाब,
कहीं घुप अंधेरे में आंखें मूंदे बैठ गए।
अचानक तेज़ हवा के झोंके ने,
यूँ छू दिया कि नये अरमान उमड़ पड़े।
इस लम्बी रात का सुंदर सवेरा हुआ,
बादल छँट गए, इंद्रधनुष ने रंग बिखेरे।
फिर से जी लूँ, दिल ने तमन्ना की,
ऐ हवा के हसीं झोंके, रूख़ ना बदल लेना…
Added by Usha on September 23, 2019 at 3:22pm — 3 Comments
ज़िम्मेदारियों में उलझी ज़िंदगी,
सरक-सरक कर गुज़रने लगी।
हादसों का सिलसिला ऐसा चला,
उम्र का अहसास गहराता गया।
उड़ने की ख़्वाहिश औ सारे ख़्वाब,
कहीं घुप अंधेरे में आंखें मूंदे बैठ गए।
अचानक तेज़ हवा के झोंके ने,
यूँ छू दिया कि नये अरमान उमड़ पड़े।
इस लम्बी रात का सुंदर सवेरा हुआ,
बादल छँट गए, इंद्रधनुष ने रंग बिखेरे।
फिर से जी लूँ, दिल ने तमन्ना की,
ऐ हवा के हसीं झोंके, रूख़ ना बदल लेना ।
मौलिक…
ContinueAdded by Usha on September 22, 2019 at 2:14pm — 2 Comments
मेरे सवाल .... अतुकांत कविता
वो तेरी प्यार भरी बातें,
तेरा रौबीला रूप,
गज़ब की मुस्कान औ दंभ,
बहुत रोका, बहुत सँभाला,
कुछ भी ना कर सकी,
ख़ुद ही ख़ुद से हार गयी।
अब वो प्यारी बातें मेरी हुईं,
तेरा रौब, मेरा सौंदर्य साथ हुए,
तू मुस्कुराया, में खिलखिलाकर हंसी,
तेरा वो दंभ, मेरा हुआ,
सात फेरों ने ज़िन्दगी दी,
तू मेरा औ मैं तेरी हुई।
कहा किया सदा, साथ ना छूटेगा,
मैं अकेली पड़…
ContinueAdded by Usha on September 7, 2019 at 3:30pm — 2 Comments
तू है यहीं..।।
दिन नया-नया सा है, ख़्वाहिशें सब पुरानी सी।
तेरा इंतज़ार था, इंतज़ार है, और इंतज़ार रहेगा।।
चाहतें हैं जो बदलती नहीं, आहें हैं, मिटती नहीं।
अहसास करवटें बदल-बदल कर सताते हैं।।
हर शाम पूछती है, बेधड़क दरवाज़ा खटखटाती है।
वो ख़ुद लौटा है, या सिर्फ़ उसकी यादें लौटी है?
यादें और यादें, तुम ही रुक जाओ, कम्बख़्त ।
मुस्कराहटें ना सही, आँसू ही दे जाओ ज़रा।।
हर मशविरा वो देता है, आगे बढ़ जाओ।
बतला…
Added by Usha on September 3, 2019 at 10:30am — 4 Comments
काफी प्रतीक्षा के बाद जनरल मैनेजर वनिता सिंह को अकेले देख कर शिवानी ठाकुर उनके चैंबर में प्रविष्ट हुयी। मैडम अपनी कार्य-शैली के अनुसार सिर झुकाये कुछ पढ़ने में व्यस्त बनी रहीं। शिवानी ने विनम्रता से बैंक जाकर ए टी एम् कार्ड रिसीव करने हेतु अनुमति माँगी।
उन्होंने सिर झुकाये ही कहा, “लिखित में लाइए।”
“मैडम, मैं अवकाश नहीं माँग रही हूँ , बैंक जाकर तुरंत वापसी कर लूंगी।
“सुना नहीं? लिखकर लाओ कि तुम कार्यालय के समय में अपना व्यक्तिगत कार्य करने जाना चाहती हो।”
शिवानी…
Continueश्री लता को अचानक ऑय सी यू में भर्ती कराने की ख़बर सुन रानी अपने दफ़्तर से निकल, आनन् फ़ानन में कुछ इस तरह गाड़ी चलाते हुए अस्पताल की तरफ लपकी, जैसे वो अपनी बहन को आखिरी बार देखने जा रही हो। श्री लता कमरा नंबर १० जो की ऑय सी यू वार्ड था में भर्ती थी। दर और घबराहट के साथ रीना रिसेप्शन पर पहुंची और पहुँचते ही उसने डॉक्टर की सुध ली।
मैडम, डॉक्टर साहेब तो जा चुके हैं, आप कल आइएगा।
ये सुनना था कि रानी का कलेजा मुँह को आ गया। मेरी बहन अभी कुछ समय पहले ही ऑय सी यू में भर्ती हुई है, श्री…
ContinueAdded by Usha on June 1, 2018 at 9:34am — 8 Comments
कितनी बंदिशें ज़िन्दगी में,
कितनी रुकावटें,
दिल नाशाद
दिमाग में रंजिशें।
बेपरवाह होके जीना,
इक गुनाह
घुट घुट के जीना,
इक सज़ा
न यह सही है न यह ग़लत
तिसपर भी ज़िन्दगी के हैं उसूल
औ नियम ,...... अनगिनत।
चाहा तो बहुत था
सब रहे सलामत
पर कब, कैसे बिगड़ गया,
याद भी नहीं रह गया
अब ये आलम है कि..... क्या है ,
क्या नहीं ,
पड़ता कहीं कोई फ़र्क़ नहीं।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha on May 25, 2016 at 5:01pm — 10 Comments
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