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मिट्टी को जिसने देश की चन्दन बना लिया
जीवन को उसने हर तरह पावन बना लिया।१।
करते नमन हैं उस को नित छोटा भले सही
जिसने भी अपना सन्त सा यौवन बना लिया।२।
कहते हैं राह रच के ही रहजन हुए मगर
अब तो वही है जिसने पथ भटकन बना लिया।३।
साधन हो साध्य से अधिक पावन ये रीत थी
पर अब फरेब झूठ को साधन बना लिया।४।
जो उम्र पढ़ने लिखने की पत्थर हैं हाथ में
कैसा सुलगता देश का बचपन बना लिया।५।
रखकर वतन को आपने काँटों की सेज पर
पाँवों को अपने फूल का आँगन बना लिया।६।
वंशज हैं जाफरों के जो अपने ही देश को
कहते हैं उनको आपने साजन बना लिया।७।
रखकर जो नाम नित नये बदले स्वभाव तो
हमने भी तपते जेठ को अगहन बना लिया।८।
मौलिक.अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
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Comment
आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए धन्यवाद।
हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी।बेहतरीन गज़ल।
रखकर वतन को आपने काँटों की सेज पर
पाँवों को अपने फूल का आँगन बना लिया।६।
आ. भाई प्रदीप देवीशरण जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए आभार।
बहुत खुब लक्ष्मण जी,
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