बर्षों से जब रहते आये दुख से मालामाल यहाँ
सुख आकर भी कर पायेगा फिर कितना कंगाल यहाँ।।
तुम रख लेना शायद तुमको उम्मीदों का साल मिले
हमने तो हर पल है खोया उम्मीदों का साल यहाँ।।
शीष झुकाये रहे सहिष्णुता जैसे सब की दोषी हो
खूब मजहबी झगड़े रहते ताने अब तो भाल यहाँ।।
साल नया कितनी उम्मीदें जनता को बचने की देगा
नित्य नया लेकर आती है राजनीति अब जाल नया।।
भाई-चारा प्यार-मुहब्बत सब एक तरफा बातें हैं
नफरत के दावानल हर घर ठोक रहे अब ताल यहाँ।।
मानवता के सत्कर्मों से मजहब दिखते दूर बहुत
गलत काम को जाति धर्म की बन जाती है ढाल यहाँ।।
शायर लेखक कवि मजहबी वर्ग बनाकर लिखते हैं
कौन उधेड़ेगा दंगों की बोलो फिर अब खाल यहाँ।।
रोकर कहता साल पुराना मैं हो बेबस जाता हूँ
भूख गरीबी जाति धर्म से लड़ना नूतन साल यहाँ।।
मौलिक.अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
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ओबीओ परिवार के समस्त सदस्यों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ...
Comment
आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए आभार।
हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी।बेहतरीन गज़ल।
भाई-चारा प्यार-मुहब्बत सब एक तरफा बातें हैं
नफरत के दावानल हर घर ठोक रहे अब ताल यहाँ।।
आ. भाई प्रदीप देवीशरण जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए आभार।
वाह वाह क्या कहने लक्ष्मण जी
आ. सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी, गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।
आ. भाई आशीष यादव जी, गजल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।
आ. भाई डॉ छोटेलाल जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।
आद0 लक्ष्मन धामी मुसाफिर जी नववर्ष के परिपेक्ष्य में अच्छी रचना सृजित की आपने। बधाई स्वीकार कीजिए।
इसी फ़रेब में सदियां गुजार दी हमने,
गुज़िश्ता साल से शायद ये साल बेहतर हो।
समय-काल की बातों को बखूबी बयाँ किया है। बधाई स्वीकार करें।
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी नव वर्ष की मंगल कामनाओं सहित इस सुंदर रचना के लिए बहुत बहुत बधाई
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