समय पास आ रहा है
बहता रहा है समय
घड़ी की बाहों में युग-युग से
पुरानी परम्परा है
घड़ी को चलने दो
समय को बहना है, बहने दो
हँसी और रुदन के बीच भटक-भटक
"यह" घड़ी अब पुरानी हो चुकी है
घड़ी की चकरदार
उभरती काँपती सूईयाँ
सुना है, यही सत्य हैं, प्रेरणा हैं यह
ज़िन्दगी जीने का सही स्वर हैं यह
मानो कठिन गणित का सवाल लिए
अपने ही गलत उत्तर से विक्षोभित
संकुचित
कुछ पल धीरे कुछ पल रुकती
सवाल का हल सोचती-सी
घड़ी पर अंकित अंकों के बीच बिछी
अज्ञात दूरी को समेटती
"यह" घड़ी अभी भी चल रही है
कब से सोच-विचार करती रुक जाती
"यह" घड़ी अब बहुत पुरानी
इसके अनगिनत पुर्ज़े भी अब वही नहीं रहे
चलते रहने का प्रयास करते-से
घुटनों में मानों अब हो रहा हो दर्द
घड़ी को हल्का-सा हिला देता हूँ
कोई आश्वासन खोज निकालता हूँ
घड़ी चल पड़ती है, समय हँस देता है
परन्तु मात्र हिला देने से
तेल का कतरा डाल देने से
कब तक ऐसे काम चलेगा
इसके पुर्ज़े आए-गए कुछ ज़ंग लगे-से
अब और आगे न चल पाने की ज़िद करते
नियमानुसार नहीं चलते
कुछ पुर्ज़ों को बदल देता हूँ
घड़ी कुछ देर फिर चल पड़ती है
"यह" बहुत पुरानी घड़ी
कभी खाँसी, ज़ुकाम, कभी आस्थमा
कभी बुख़ार की कंपकपी
आज सिर में दर्द, कल नज़र में कमी
पलकों पर पुरानी स्मृतियों की नमी
कविता लिखती-सी ... कब, कहाँ, क्या हुआ
दर्द किसी ने इ-त-ना क्यूँ दिया
कुछ भी तो सपष्ट दिखाई नहीं देता
अब घड़ी के कई पुर्ज़े तक नहीं मिलते
रुक-रुक कर थम जाने से पहले
बर्फ़ीले मौन में
किन-किन स्मृतियों को परे करे
कोई पास आ रहा है, दूर जा रहा है, पास आ रहा है
गतिशील अनवस्थ हवा
ज़रूर कोई संदेश लिए है आज
शोर में भी है अजीब खामोशी
"इस" घड़ी का शायद
समय आ रहा है
--------
-- विजय निकोर
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, मित्र नानक जी।
सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, भाई समर कबीर जी।
प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब,बहुत उम्द: रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, मित्र सुरेन्द्र जी।
आद0 विजय निकोर जी सादर अभिवादन। बेहतरीन उम्दा भाव सम्प्रेषण लिए इस रचना पर आपको अनन्त बधाई निवेदित करता हूँ। सादर
आपका हार्दिक आभार, मित्र लक्ष्मण जी
आ. भाई विजय निकोर जी, सादर अभिवादन। उत्तम रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।
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