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(डॉ 0 अनिल मिश्र की अंग्रेजी कविता का हिन्दी रूपांतरण )

सभी जो निरीह हैं वो भ्रूण हों या वयोवृद्ध  

सब के सब जीवित शताधिक जला दिये   

 

गोलियों से भूने गए कितने हजार और

कितने सहस्र को निराश्रित बना दिये   

 

और कई पारावार आंसुओं के बार-बार

बाढ़ की तरह नित्य सहसा उफना दिये    

 

क्रूरता के निज कृत रचित विधान से ही   

वसुधा में कितने ही सपूत दफना दिये

 

 

सभ्यता के मूर्तिमान मानव प्रजाति हम

अपना जो भी संगत-असंगत स्वरुप है

 

चाहे जो भी कारण हो, लिप्त जो भी क्रूरता में

व्यक्ति समुदाय धर्म सभी कुछ कुरूप है

 

हिंसा में निमग्न नर हों या कि नारियां हों  

जान लें कि पथ यह गहन अंध कूप है

 

कुछ भी भलाई नही होगी उग्रवाद से

देश के समाज हित ये काल प्रतिरूप है    

(मौलिक/ अप्रकाशित)

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 29, 2017 at 7:54pm
पढ़कर आनंद आ गया । हार्दिक बधाई , आ. भाई गोपाल नारायन जी ।
Comment by Samar kabeer on November 28, 2017 at 4:53pm
जनाब डॉ.गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आदाब,बहतरीन हिन्दी रूपांतरण,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 27, 2017 at 9:03pm
बेहतरीन हिन्दी रूपांतरण और सार्थक/तार्किक भावाव्यक्ति के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद और आभार आदरणीय डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी।

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