‘सर—---सर---‘, उसने हकलाते हुए कहा –‘सर, मेरे पास जवान, सुन्दर और हसीन लड़कियों की कोई कमी नहीं है. आप उनमे से किसी को चुन लें, पर भगवान् के लिए इस लडकी को छोड़ दें’- उसने बॉस से गिडगिडाते हुए कहा .
‘अच्छा !-----मगर इस लडकी में ऐसा क्या है जो तुम इस पर इतना मेहरबान हो ?’
‘दरअसल------दरअसल -----‘ उससे कहते न बना .
‘अरे बिदास कहो. हमसे क्या डरना ?’
‘सर, वह मेरी बेटी है‘ उसका हलक सूख गया . बॉस की आँखों में विस्मय भरी चमक आयी –‘ अरे ! तब तो यह नामुमकिन है कि हम इस जवान नागिन का जहर न उतारें.’ बॉस ने खौफनाक आवाज में कहा .
{मौलिक /अप्रकाशित)
Comment
आपकी एक और बेहतरीन रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी।
मुहतरम जनाब गोपाल भाई साहिब , उम्दा लघुकथा हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ.गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी।बेहतरीन लघुकथा।
बढ़िया लघुकथा हुई है आदरणीय| हार्दिक बधाई|
बढ़िया लघुकथा है आ. गोपाल नारायण जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए.
‘सर, यह मेरी बेटी है‘
सादर.
जनाब डॉ.गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय गोपाल नारायण जी आदाब,
बहुत ही ज्वलंत और सामयिक लघुकथा । इस लघुकथा के माध्यम से आपने इशारों-इशारों में सबकुछ कह दिया । ज़ियादा कहने की कोई आवश्यकता नहीं है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
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