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दोहा सलिला: गले मिले दोहा यमक

दोहा सलिला:
गले मिले दोहा यमक
संजीव 'सलिल'
*
मनहर ने मन हर लिया, दिलवर दिल वर मौन.
पूछ रहा चितचोर! चित, चोर कहाँ है कौन??
*
देख रही थी मछलियाँ, मगर मगर था दूर.
रखा कलेजा पेड़ पर, कह भागा लंगूर..
*
कर वट को सादर नमन, वट सावित्री पर्व.
करवट ले फिर सो रहे, थामे हाथ सगर्व..
*
शतदल के शत दल खुले, भ्रमर करे रस-पान.
बंद हुए शतदल भ्रमर, मग्न करे गुण-गान..
*
सर हद के भीतर रखें, सरहद करें न पार.
नत सर गम की गाइये, सरगम  बरखुरदार..
*
हर छठ पर हरछठ नहीं, पूज रहीं क्यों आप?
हर दम पर हरदम नहीं, आप कर रहे जाप..
*
लेते हैं चट पटा वे, सुना चटपटा जोक.
सौदा करता जिस तरह, चतुरा बनिया थोक..
*

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 16, 2013 at 8:31pm

आदरणीय आचार्यजी,

उन्नत दोहे-बिम्ब हैं, यमक खिले हर बंद ।
दोहों में सुख-भाव है,   प्रेरक है हर छंद ॥

सादर

Comment by sanjiv verma 'salil' on January 11, 2013 at 8:38am

प्राची जी, विजय जी, बागी जी, प्रदीप जी
आपको दोहे पसंद आये तो मेरा कवी-कर्म सार्थक हुआ. हार्दिक धन्यवाद.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on January 10, 2013 at 4:16pm

aanand aa gaya sir jii. 

sikh bhi mili likhne ki

badhai 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 10, 2013 at 3:00pm

लेते हैं चट पटा वे, सुना चटपटा जोक.
सौदा करता जिस तरह, चतुरा बनिया थोक..................

क्या बात है आदरणीय, शब्दों की जादूगरी देखते ही बनता है, बहुत ही सुन्दर दोहे प्रस्तुत किये हैं , बधाई आचार्य जी |

Comment by vijay nikore on January 9, 2013 at 3:31pm

संजीव जी,

सदैव समान यह दोहे पढ़ कर आनन्द आ गया ।

विजय निकोर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 9, 2013 at 1:12pm

आदरणीय संजीव जी , 

सादर प्रणाम! 

बहुत सुन्दर दोहे, अलंकार से अलंकृत क्या ही रूप निखरा है, वाह आनंद आ गया पढ़ कर,

ऐसी रचनाएं विरले ही पड़ने को मिलती हैं. इस अनुपम कृति के लिए आपको ह्रदय से बधाई.

हम नवरचनाकारों के लिए ऐसी रचनाएं अमृत वर्षा के जैसी लगती हैं. पाठक के अन्दर का रचनाकार तृप्त होता है ऐसी विशिष्ट अलंकृत रचनाओं को पढ़ कर. 

हार्दिक साधुवाद इस सुन्दर दोहावली के लिए. सादर.

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