For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122 1212 22

तेरी रहमत अगर हुई होती ।
ज़िंदगी आज ज़िंदगी होती ।

आज पत्ते भी सब हरे होते।
गर हवा इस तरफ चली होती।

राह होती नहीं कभी मुश्किल।
साथ तू भी अगर रही होती।

तू अगर राजदां बना होता।
कोई तुहमत नहीं लगी होती।

कारवाँ दूर तक गया होता।
सोच सबकी अगर भली होती।

वो जुदा हो के भी मिला होता।
बात "साहिल" अगर हुई होती।

केतन साहिल
अप्रकाशित और मौखिक

Views: 601

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 10, 2013 at 11:30pm

जय हो.. .

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 6, 2013 at 2:24pm

अच्छी ग़ज़ल कही है आपने

दिली दाद कुबूल कीजिये सादर

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on December 5, 2013 at 10:18pm
बहुत बधाई भाई केतन जी
Comment by Ketan "SAAHIL" on December 5, 2013 at 9:50pm
manu ji shukriya
Comment by जगदानन्द झा 'मनु' on December 5, 2013 at 8:22pm

 बहुत ही उम्दा ग़ज़ल,  साहिल साब

Comment by Ketan "SAAHIL" on December 5, 2013 at 7:19pm
shukriya dost
Comment by अरुन 'अनन्त' on December 5, 2013 at 5:23pm

केतन भाई बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही है आपने सभी अशआर पसंद आये बधाई स्वीकारें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 5, 2013 at 2:36pm

आदरणीय  केतन भाई , !!!!! सुन्दर गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाई !!!!!

Comment by Saarthi Baidyanath on December 5, 2013 at 1:13pm

तेरी रहमत अगर हुई होती ।
ज़िंदगी आज ज़िंदगी होती ।

कारवाँ दूर तक गया होता।
सोच सबकी अगर भली होती।....दिली दाद हाजिर है इन मिसरों के लिए ..! बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है !

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 5, 2013 at 12:08pm

केतन जी

बहुत ही भावपूर्ण ग़ज़ल i आपको अनेक बधाइयाँ  i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"दोहा अष्टक***हर पथ जब आसान हो, क्या जीवन संघर्ष।लड़-भिड़कर ही कष्ट से, मिलता है उत्कर्ष।।*सहनशील बन…"
45 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170
"सादर अभिवादन।"
48 minutes ago
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
yesterday
सतविन्द्र कुमार राणा posted a blog post

जमा है धुंध का बादल

  चला क्या आज दुनिया में बताने को वही आया जमा है धुंध का बादल हटाने को वही आयाजरा सोचो कभी झगड़े भला…See More
yesterday
आशीष यादव posted a blog post

जाने तुमको क्या क्या कहता

तेरी बात अगर छिड़ जातीजाने तुमको क्या क्या कहतासूरज चंदा तारे उपवनझील समंदर दरिया कहताकहता तेरे…See More
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . रोटी
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post एक बूँद
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है । हार्दिक बधाई।"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . रोटी
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
Jan 4
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर "
Jan 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . विरह
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Jan 2

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service