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"अरे गप्पू ये तो अपने ही साहब हैं चल चल जल्दी.."

जैसे ही ट्राफिक लाईट पर गाड़ी रुकी, महज दस साल का टिंकू अपने छोटे भाई गप्पू के साथ दौड़ता हुआ कार की दाहिनी ओर आकर बोला,

“अरे साब आज आप इतनी जल्दी ?"

"रावण जलता देखना है ", साहब ने जल्दी से उत्तर दिया |

"अच्छा.. साहब गजरा.. ",

टिंकू के हाथ में गजरा देखते ही बगल में बैठी मेमसाहब बोली, "अरे ले लो,  कितने का है ?"

"चालीस रूपये का..", टिंकू ने तुरंत जबाब दिया ।

सुनते ही साहब तुनक कर बोले, "एक दिन में भाव बदल गए ? ये चालीस का हो गया ? कल तक तो बीऽऽऽ...", 

कहते-कहते साहब अचानक रुक गए ।

"साहब ! जब एक दिन में मेमसाहब बदल जाती हैं, तो भाव नहीं बदल सकते क्या ?"

बात पूरी होने से पहले ही साहब ने टिंकू के ऊपर चालीस रूपये फेंके और लगभग गजरा छीनते हुए उन्होंने गाड़ी बढ़ा दी ।

टिंकू फिर भी पीछे-पीछे दौड़ने लगा ।

गप्पू ने पूछा "भाई, जब उन्होंने पैसे दे दिए तो हम क्यों पीछे-पीछे भाग रहे हैं ?"

"अभी मजे देखना गप्पू, यदि ये मेमसाब इनकी घरवाली हुईं, तो गजरा अभी बाहर आएगा.."

बात पूरी भी नहीं हुई कि खटाक से गाडी से बाहर गजरा फेंक दिया गया । टिंकू ने दौड़ कर लपक लिया फिर प्रश्नवाचक भाव से देखते हुए गप्पू को आँख मारते हुए बोला, "अभी तू छोटा है रे.. नहीं समझेगा ये बड़े लोगों की बातें !!.. चल अपुन भी रामलीला मैदान चलें !.."


*****************


मौलिक एवं अप्रकाशित
 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 10, 2013 at 10:44am

आदरणीया अन्नापूर्णा जी आपको चुहल पसंद आई हार्दिक आभार आपका |

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 10, 2013 at 9:57am

लघु कथा की बधाई आ. राजेशकुमारी जी।

बड़े घरानों के शरीफजादों  के चरित्र से गली कूचे के बच्चे वाकिफ होते हैं। लेकिन पत्नी को एहसास तक नहीं होता। बेचारी गिफ्ट पाकर ही खुश होती रहती है। 

Comment by vandana on October 10, 2013 at 7:21am

 हा हा हा :) कमाल की लघुकथा आदरणीय राजेश दी !!

Comment by वेदिका on October 9, 2013 at 11:51pm

हा हा हा :-) एतिहासिक लघुकथा जैसे एक कमाल का ब्रेक मिला  :)))

हँसते हँसते शुभकामनाएं प्रेषित कर रही हूँ :-) !!

Comment by annapurna bajpai on October 9, 2013 at 10:53pm

सचमुच बहुत ही बढ़िया चुहल की है , बहुत बधाई आपको आ0 राजेश कुमारी जी । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 9, 2013 at 9:24pm

समझने वाले तो  मजमून लिफ़ाफ़ा देख कर ही समझ जाते  हैं जनाब कहाँ तक बचोगे ,एक न एक दिन तो पोल खुलनी ही है फिर कार से फेंके जाओ या छत से हहाहाहा ,बहुत- बहुत आभारी हूँ सुशील जी आपने इस लघु कथा में हास्यरस का आनंद लिया 

Comment by Sushil.Joshi on October 9, 2013 at 9:08pm

बहुत ही रोचक हास्य लखु कथा है आदरणीया राजेश कुमारी जी.... लेकिन यदि आप इस प्रकार हम मर्दों की पोल खोलती रहेंगी तो वो दिन दूर नहीं जब कार की खिड़की से गजरे के स्थान पर हमें फेंक दिया जाएगा...... हा..हा..हा..... वैसे इस पोल खोलक लघु कथा के लिए दिल से बधाई स्वीकारें.....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 9, 2013 at 8:53pm

प्रिय सरिता जी आपको ये चुहल हंसा सकी मेरी लघु कथा का प्रयोजन सार्थक हुआ बहुत बहुत आभार आपका 

Comment by Sarita Bhatia on October 9, 2013 at 8:34pm

हाहाहा दी बहुत खुबसूरत चित्रण खिंच दिया चुहुलबाजी से ही लोगों की मानसिकता का 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 9, 2013 at 7:51pm

 हहाहाहा शिज्जू शकूर जी  सही कहा ,ऐसे माहौल में बच्चे भी बड़े तेज हो जाते हैं बड़ो बड़ो के कान काटते हैं सच में ,दिल से आभारी हूँ प्रस्तुति पसंद आई आपको 

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