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बहरे रमल मुसम्मन महज़ूफ़:
फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
क्या फ़सादात-ए-शिकस्ता प्यार से आगे लिखूँ
मुद्दआ है क्या दिल-ए-ग़मख़्वार से आगे लिखूँ
आरज़ूएं, दिल बिरिश्ता, ज़ख्म या हैरानियाँ
क्या लिखूं गर मैं विसाल-ए-यार से आगे लिखूं
दर्द टूटे फूल का तो बाग़वाँ ही जानता
सोज़िश-ए-गुल रौनक-ए-गुलज़ार से आगे लिखूँ
हक़ बयानी ऐ ज़माँ दे हौसला बातिल न हो
जो लिखूँ मैं ख़ारिजी इज़हार से आगे लिखूँ
कब हुई है इश्क़ की चाराग़री जुज़ इश्क़ से
है ज़रूरी मैं शिफ़ा तीमार से आगे लिखूँ
है सड़क पे सोने वालों का भी अपना आशियाँ
मै सिफ़त घर की दरोदीवार से आगे लिखूँ
है दुआ चहरा कभी अपनों का मुतसव्वर न हो
इस्म मैं जब नामज़द अग्यार से आगे लिखूँ
होश तुझको देखते ही जब हुए हैं फ़ाख्ता
हाल क्या अपना दम-ए-दीदार से आगे लिखूँ
ग़ालिबन तुझको समझ आये मआल-ए-आशिक़ी
मैं कहानी जब तिरे इनकार से आगे लिखूँ
लग रही हैं बोलियाँ बाज़ार में फिर क्यूँ नहीं
आदमी का मर्तबा बाज़ार से आगे लिखूं
है गिरफ्त-ए-आजिज़ी में ज़िंदगी हर शख्स की
सानिहा अब क्या वही हर बार से आगे लिखूं
~ राज़ नवादवी
फ़सादात-ए-शिकस्ता प्यार- भग्न प्रेम की ख़राबियाँ; दिल-ए-ग़मख़्वार- सहानुभूतिशील ह्रदय; बिरिश्ता- दग्ध; विसाल-ए-यार- प्रेम के आधेय से मिलन; सोज़िश-ए-गुल- पुष्प की पीड़ा; रौनक-ए-गुलज़ार- उपवन की रौनक; हक़बयानी- सत्यवाचन; ज़माँ- ज़माना; बातिल- झूठा; ख़ारिजी- बाहरी; शिफ़ा- इलाज; तीमार- देखभाल, सेवा सुश्रुषा; सिफ़त- परिभाषा, गुण, ख़ासियत; मुतसव्वर होना- (चेहरा) ध्यान में आना; इस्म- नाम; नामज़द- पहचान हुआ; अग्यार- दुश्मन लोग; दम-ए-दीदार- दर्शन की घड़ी या पल; ग़ालिबन- कदाचित्, शायद; मआल-ए-आशिक़ी- प्रेम करने का परिणाम; मर्तबा- पद, श्रेणी, प्रतिष्ठा; सानिहा- दुर्घटना, कोई बुरा समाचार
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
सादर धन्यवाद आदरणीय | ग़ज़ल अच्छी कही है आपने , अर्थ साथ दिए है सो थोडा समझ पाए हैं :) | हार्दिक बधाई आपको इस ग़ज़ल के लिए |
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