For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ४९

बहरे रमल मुसद्दस सालिम;

फ़ाएलातुन/ फ़ाएलातुन/फ़ाएलातुन;

2122/2122/2122)

.

झाँक कर वो देख ले अपनी ख़ुदी में

ऐब दिखता है जिसे हर आदमी में 

 

पास आकर दूरियों का अक्स देखा

ग़ैर जब होने लगा तू दोस्ती में

 

यूँ नहीं मरते हैं हम सादासिफ़त पे

रंग सातों मुन्शइब हैं सादगी में

 

इक पसेमंज़र-ए-ज़ुल्मत है ज़रूरी

यूँ नहीं दिखती हैं चीज़ें रौशनी में

 

आ तुझे भी इस्तिआरों से सवारूँ

लफ्ज़ के गौहर बनाकर शाइरी में 

 

रौशनी से किस तरह ख़ुद को बचाएँ

छटपटाहट सी मची है तीरगी में

 

दर्द को बाहोश हो तकतीअ कर लो

प्यार का तकसीम करना बेखुदी में

 

दीदनी जब इश्क़ की होगी हकीक़त

दर्द को पाओगे काबिज़ हर खुशी में

 

आसमां के पार से आता नहीं है

मौत का लम्हा छिपा है ज़िंदगी में

 

~राज़ नवादवी

 मौलिक और अप्रकाशित 

अक्स- चित्र, छाया, प्रतिबिम्ब; सादासिफ़त- बेदाग़ गुण या स्वभाव वाला; इस्तिआरों इस्तिआरा- रूपक; गौहर- मोती; तीरगी- अन्धकार; मानूस- परिचित;  तकतीअ- टुकड़े- टुकड़े करना; तकसीम- बाँटना, बँटवारा करना; दीदनी- देखने योग्य; काबिज़- किसी पे कब्ज़ा होना;

 

Views: 813

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on August 24, 2017 at 1:45am

आदरणीय रवि शुक्ला साहेब, आपका ह्रदय से आभार. आपकी दाद दिल से कुबूल करता हूँ. लर्निंग mode में हूँ और आप सबों की शुभकामनाओं से सीखने की दिशा में आवश्यक कदम उठाता रहूँगा. सादर. 

Comment by राज़ नवादवी on August 24, 2017 at 1:41am

आदरणीय समर साहेब, आपका ह्रदय से आभार. आपके मार्गदर्शन एवं इस्लाह में बहुत कुछ सीखने का मौक़ा मिलेगा, इसकी मुझे बेहद ख़ुशी है. आपने जो भी फरमाया है बिलकुल बजा फरमाया है. शिल्प और व्याकरण की अशुद्धियों को दूर करने का पूरा  प्रयास करूंगा. जहां तक पसेमंज़र वाले शेर के रब्त की बात है, बात ये है कि इसे उस आध्यात्मिक विचार के हिसाब से लिखा गया है जिसके अनुसार सृष्टि अपने मूल रूप में अथवा ईश्वरीय रूप में तमस है, अर्थात् रजस अथवा सत्व नहीं, एवं मूल रूप से बाहर ही प्रकाशित है. अर्थात जो भी दृश्यमान अथवा संज्ञान या असंज्ञान में कल्पनीय है वो प्रकाश स्वरुप है और मूल तमिस्र की पृष्ठभूमि में ही गोचर है. सीधे सीधे शब्दों में कहा जाए तो अन्धकार अथवा तमिस्र ही मौलिक अवस्था या आधेय है एवं प्रकाश रचित विश्व है. अन्धकार स्वाभाविक रूप से व्याप्त है, प्रकाश लाना पड़ता है. और अन्धकार की पृष्ठभूमि में ही साकार विश्व ज्ञेय है.

तीरगी वाले शेर में कथ्य ये है कि तीरगी यह सोचती है कि हम खुद को रौशनी से किस तरह बचाएं, इस लिए बचाएं का प्रयोग किया. हाँ आपकी बात भी सही है कि तीरगी के लिए हम की जगह मैं का इस्तेमाल होने से बचाऊं शब्द का प्रयोग होना चाहिए. तकसीम वाले शेर में निश्चय ही व्याकरण की त्रुटि है. 'प्यार को तक़सीम करना बेख़ुदी में ही बेहतर और शुद्ध है. आपके मशविरे को दिल से क़ुबूल करते हुए भविष्य में और बेहतर करनी की हमारी कोशिश होगी. सादर. 

Comment by Ravi Shukla on August 22, 2017 at 5:36pm

आदरणीय राज नवादवी जी बहुत बढि़या गजल कही आपने आदरणीय समर साहब के मश्‍वरे के अनुसार अश्‍आर में और भी निखार आ गया है

यूँ नहीं मरते हैं हम सादासिफ़त पे

रंग सातों मुन्शइब हैं सादगी में

 

इक पसेमंज़र-ए-ज़ुल्मत है ज़रूरी

यूँ नहीं दिखती हैं चीज़ें रौशनी में  कथ्‍य को देखें तो हमें ये दोनो शेर बहुत पसंद आए । पुन: बधाई । सादर

Comment by Samar kabeer on August 21, 2017 at 8:21pm
जनाब राज़ नवादवी साहिब आदाब,ग़ज़ल का बहुत अच्छा प्रयास हुआ है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
एक बात बताना चाहूंगा कि ग़ज़ल में अरूज़ तो पहली सीढ़ी है, लेकिन उसके साथ कुछ और बातों का ध्यान रखना भी ज़रूरी होता है,मसलन अल्फ़ाज़ की चुस्त बंदिश ग्रामर वग़ैरह ।

'इक पस-ए-मंज़र-ए-ज़ुल्मत है ज़रूरी'
इस मिसरे में अल्फ़ाज़ की बंदिश सही नहीं लगती,एक इज़ाफ़त के फौरन बाद दूसरी इज़ाफ़त का इस्तेमाल भला नहीं लगता,और शैर के दोनों मिसरों में रब्त भी नहीं है,क्या कहना चाहते हैं आप ?

'रौशनी से किस तरह ख़ुद को बचाएं
छटपटाहट सी मची है तीरगी में'
इस शैर के ऊला मिसरे में 'बचाएं'शब्द बहुवचन के लिये है, और 'तीरगी' एक वचन है, इस लिहाज़ से ऊला मिसरे में 'बचाएं'की जगह "बचाऊँ" मुनासिब होगा ।

'प्यार का तक़सीम करना बेख़ुदी में'
इस मिसरे में चूँकि 'तक़सीम'स्त्रीलिंग है,इसलिये ये मिसरा यूँ होना चाहिये :-
"प्यार को तक़सीम करना बेख़ुदी में" या
"प्यार की तक़सीम करना बेख़ुदी में"
Comment by राज़ नवादवी on August 20, 2017 at 10:33pm

आदरणीय डॉ कँवर साहेब, आपका ह्रदय से आभार. 

Comment by कंवर करतार on August 20, 2017 at 10:10pm

राज नवादवी जी दाद कबूल करें बढ़िया ग़ज़ल हुई है I  

Comment by राज़ नवादवी on August 20, 2017 at 9:45pm

शुक्रिया जनाब धामी साहब, दिल से आभार! 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 20, 2017 at 9:20pm
अति सुंदर.।.
Comment by राज़ नवादवी on August 20, 2017 at 12:46pm

मुहतरम जनाब आरिफ़ साहब, आपकी दाद दिल से कुबूल करता हूँ, हौसलाअफज़ाई का दिली शुक्रिया. सीनियर मेम्बरान से गुजारिश है ब नुकत-ए-अरूज इस्लाह का करम फरमाएं. 

Comment by Mohammed Arif on August 20, 2017 at 10:17am
आदरणीय राज़ नवादवी आदाब, बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूल क़ुबूल करें । ग़ज़ल सौष्ठव की दृष्टि से यह ग़ज़ल कितनी खरी उतरती है इस बारे में वरिष्ठ बताएँगे ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"गजल**किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगेअँधेरों    को   हरने  उजाला …"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई भिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर उत्तम रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"दीपोत्सव क्या निश्चित है हार सदा निर्बोध तमस की? दीप जलाकर जीत ज्ञान की हो जाएगी? क्या इतने भर से…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"धन्यवाद आदरणीय "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"ओबीओ लाइव महा उत्सव अंक 179 में स्वागत है।"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"स्वागतम"
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service