For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जन भ्रमित है , मन भ्रमित है -- डॉ o विजय शंकर

जन भ्रमित है ,
मन भ्रमित है ,
जन-इच्छा , बनी नहीं ,
जन-शक्ति , जगी नहीं ,
जनतंत्र है , तंत्र को
जन की ही खबर नहीं ,
कोई फ़िकर नहीं |
तंत्र जन जन से दूर है ,
जन तंत्र से मजबूर है ,
विवश है, लाचार है,
डरा ,सहमा , बीमार है,
कुछ कह नहीं पाता ,
जनादेश देने वाला,
आदेश , किसी को ,
दे नहीं पाता ,
तंत्र व्यस्त है , स्वयं में मस्त है ,
जन उपेक्षित है , हालात से त्रस्त है ,
तंत्र क्या क्या पा रहा है,
जन क्या क्या खो रहा है ,
दोनों को पता नहीं ,
वो हँस रहा है, वो रो रहा है,
सेवक अलमस्त सो रहा है,
मालिक छुप के रो रहा है||
ये कर है, वो कर है ,
हर सेवा पर कर है ,
करों की भरमार है ,
सुविधा-शुल्क की मार है ,
जन-सुविधा जनाचार है ,
है ,कहीं भी है , तो क्यों ,
क्यों, ये अनाचार है।

ये कौन गुनगुना रहा है ,
कौन नांच - गा रहा है ,
दूर कौन बँसुरी बजा रहा है ,
ये धुंआ कहाँ , कहाँ से आ रहा है ,
उसकी नज़र में क्या है , जो
उसे ही ये नज़र नहीं आ रहा है।
उसे ये नज़र क्यों नहीं आ रहा है।

मौलिक एवं अप्रकाशित
डॉo विजय शंकर

Views: 795

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 22, 2015 at 10:23am
आदरणीय प्रतिभा त्रिपाठी जी ,
रचना को स्वीकार करने और बधाई हेतु आभार एवं धन्यवाद, सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 22, 2015 at 10:20am
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी ,
सद्भावनाओं एवं बधाई हेतु ह्रदय से आभार , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 22, 2015 at 8:05am

आदरणीय विजय भाई , वर्तमान मे व्याप्त विडंबनाओं को सुन्दर शब्द मिले हैं , बधाइयाँ ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 21, 2015 at 10:17pm
आदरणीय राजेश कुमारी जी, रचना को स्वीकृति प्रदान करने एवं बधाई हेतु आभार एवं धन्यवाद , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 21, 2015 at 10:11pm

आज के हालात को बयां करती बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ,हार्दिक बधाई आ० डॉ. विजय शंकर जी  

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 21, 2015 at 6:39pm
रचना को स्वीकृति प्रदान करने हेतु आपका बहुत बहुत आभार, आदरणीय लक्षमण रामानुज लडीवाला जी, आपकी बधाई केलिए भी धन्यवाद ,सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 21, 2015 at 6:36pm
रचना की गहराई को स्वीकृति प्रदान करने हेतु आपका बहुत बहुत आभार प्रिय जीतेन्द्र जी, आपकी बधाई केलिए भी धन्यवाद ,सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 21, 2015 at 6:32pm
रचना की स्वीकृति हेतु आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी, सादर।
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 21, 2015 at 3:36pm

होने को तो जनतंत्र, जन से है. किन्तु आपकी गहन अभिव्यक्ति पूर्ण स्पष्ट करती प्रतीत हो रही है कि तंत्र व्यस्त भी है और मस्त भी.

सच को उजागर करती रचना पर बधाई स्वीकारें, आदरणीय डा.विजय जी

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 21, 2015 at 12:36pm

जनतंत्र है , तंत्र को
जन की ही खबर नहीं ,
कोई फ़िकर नहीं |
तंत्र जन जन से दूर है ,
जन तंत्र से मजबूर है ,----- बहुत  सुंदर | आज के तंत्र पर अच्छी  रचना के लिए हार्दिक  बधाई श्री विजय शंकर जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service