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आदरणीय डॉ विजय शंकर जी, अंतिम पंक्तियाँ अप्रतिम हैं. इस रचना में बहुत कुछ है जो एक रचनाकार के साहित्यिक दायित्वबोध को स्वर और आकाश दोनों प्रदान करता है....अनेक साधुवाद. सादर.
जनतन्त्र में ईंट का कार्य करने वाले वे बुनियादी मतदाता है जिनसे सत्ता बनती है, जनतंत्र फलता फूलता है और जिनकी बदौलत ही हुकूमत चलती है | सुंदर विचारों के लिए साधुवाद डॉ विजय शंकर जी
महल की ऊपरी आखिरी ईंट तक
बुनियाद की शुक्रगुजार होती है ,
ख्याल कर ,
ये कब से तुझको
इतना ऊंचा उठाये हैं अपने सिर पर ,
इनका तो ख्याल कर ||-----------------बेहतरीन विजय सर ,साधुवाद i
ये हुकूमतें , ये शान,
ये ऐशो -आराम ,
किस से हैं , किस की बदौलत हैं ,
जिस दिन ये यह अहसास हो जाएगा ,
उस दिन जनतंत्र भी पूर्ण हो जाएगा ॥
आदरणीय विजय शंकर सर ,सही अर्थों में जो लोग पालकी उठाये हुये हैं ,उन्हीं पर कोड़े बरसाए जा रहें हैं |हमें उस दिन की बेसब्र प्रतीक्षा है ,जिस दिन "जनतंत्र भी पूर्ण हो जाएगा "॥सादर अभिनन्दन |
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