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जनतंत्र पूर्ण हो जाएगा --- डॉ o विजय शंकर

ये हुकूमतें , ये शान,
ये ऐशो -आराम ,
किस से हैं , किस की बदौलत हैं ,
जिस दिन ये यह अहसास हो जाएगा ,
उस दिन जनतंत्र भी पूर्ण हो जाएगा ॥

बत्तीस रूपये प्रतिदिन में
जिंदगी गुजारने वाले,
किसके बनाये हुए हैं ,
इनकी सोच , इन्होंने ही
एक एक वोट जोड़कर ,
तुझ जैसों को राजा बनाया है ||

महल की ऊपरी आखिरी ईंट तक
बुनियाद की शुक्रगुजार होती है ,
ख्याल कर ,
ये कब से तुझको
इतना ऊंचा उठाये हैं अपने सिर पर ,
इनका तो ख्याल कर ||

मौलिक एवं अप्रकाशित
डॉo विजय शंकर

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Comment

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Comment by Dr. Vijai Shanker on February 3, 2015 at 11:09pm
आदरणीय शरदिंदु मुखर्जी , आपने रचना को अपने अनमोल शब्दों से मान दिया है, आपका बहुत बहुत आभार , हम अपने लेखन में दाइत्व का निर्वहन कर सकें यह हमारे लिए सौभाज्ञ ही है, आपकी अनेक सद्भावनाओं के लिए ह्रदय से बहुत बहुत धन्यवाद , सादर।

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Comment by sharadindu mukerji on February 3, 2015 at 2:52pm

आदरणीय डॉ विजय शंकर जी, अंतिम पंक्तियाँ अप्रतिम हैं. इस रचना में बहुत कुछ है जो एक रचनाकार के साहित्यिक दायित्वबोध को स्वर और आकाश दोनों प्रदान करता है....अनेक साधुवाद. सादर.

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 29, 2015 at 11:27am
आदरणीय लक्ष्मण लाडीवाला जी, कविता अपने भावों के साथ आपको पसंद आई , यही उसकी सार्थकता है, आपका बहुत बहुत आभार , सादर।
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 29, 2015 at 10:50am

जनतन्त्र में ईंट का कार्य करने वाले वे बुनियादी मतदाता है जिनसे सत्ता बनती है, जनतंत्र फलता फूलता है और जिनकी बदौलत ही हुकूमत चलती है | सुंदर विचारों के लिए साधुवाद डॉ  विजय शंकर जी 

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 28, 2015 at 9:02pm
आभार, आदरणीय डॉ O गोपाल नारायण जी, सद्भावनाओं के बहुत बहुत धन्यवाद, सादर।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 28, 2015 at 8:16pm

महल की ऊपरी आखिरी ईंट तक
बुनियाद की शुक्रगुजार होती है ,
ख्याल कर ,
ये कब से तुझको
इतना ऊंचा उठाये हैं अपने सिर पर ,
इनका तो ख्याल कर ||-----------------बेहतरीन विजय सर ,साधुवाद i

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 27, 2015 at 11:20am
आदरणीय खुर्शीद खैरादी जी, स्थिति का बहुत सही आंकलन किया है आपने , रचना को स्वीकार करने के लिए बहुत बहुत आभार, आपकी सद्भावनाओं के लिए ह्रदय से धन्यवाद। सादर।
Comment by khursheed khairadi on January 27, 2015 at 10:48am

ये हुकूमतें , ये शान,
ये ऐशो -आराम ,
किस से हैं , किस की बदौलत हैं ,
जिस दिन ये यह अहसास हो जाएगा ,
उस दिन जनतंत्र भी पूर्ण हो जाएगा ॥

आदरणीय विजय शंकर सर ,सही अर्थों में जो लोग पालकी उठाये हुये हैं ,उन्हीं पर कोड़े बरसाए जा रहें हैं |हमें उस दिन की बेसब्र प्रतीक्षा है ,जिस दिन "जनतंत्र भी पूर्ण हो जाएगा "॥सादर अभिनन्दन |

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 27, 2015 at 10:38am
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी , रचना स्वीकार करने के लिए बहुत बहुत आभार , आपने स्थिति का बहुत सही मूल्यांकन किया है , आपकी बधाइयों के लिए ह्रदय से धन्यवाद , सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 27, 2015 at 10:32am
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, आपने बहुत सरल शब्दों में सार रख दिया , धन्यवाद रचना स्वीकार करने के लिए , सादर।

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