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आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी , आभार, आपने बड़े मनोयोग से रचना का पाठ किया और ुटण३ ही मनोयोग से उसकी टिप्प्पणी लिखी। बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद।
आपका सुझाव बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक है ! अवश्य प्रयास करूंगा। सादर।
आदरणीय विजय निकोर जी , आशा है स्वस्थ एवं सानंद होंगे। रचना पर उपस्थित होने के लिए आपका बहुत बहुत आभार एवं ह्रदय से धन्यवाद सादर।
या शीर्षक "जोंक-बाज़ार"!
निर्जीव और सजीव; उपयोगी और अनुपयोगी; राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय; उचित और अनुचित; स्वाभाविक और थोपी गई सब चीज़ों/उत्पादों/प्रवृत्तियों पर गहरे और गंभीर कटाक्ष करती 'गागर में सागर' विचारोत्तेजक सृजन हेेतु सादर हार्दिक बधाइयां मुहतरम जनाब
डॉ. विजय शंकर साहिब। मेरे ख़्याल से आपको यह एक बेहतरीन लघुकथा में भी कहना चाहिए। शीर्षक हिंदी में "जोंक" या "जौंकें" या "जौंकों का प्रकोप/झोंक" जैसे हो सकते हैं। एक अभ्यास मात्र!
अति प्रभावशाली प्रस्तुति। आनन्द आ गया । बधाई, विजय जी।
आदरणीय समर कबीर साहब , नमस्कार , आशा है आप स्वस्थ एवं प्रसन्न होगें। छोटी सी मेरी इस कविता को आपने इतनी गंभीर विवेचना से नवाज़ा , बहुत बहुत शुक्रिया। आपका ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद।
स्वास्थ ठीक है , व्यस्तता ज्यों कि त्यों। इसी व्यस्तता में अमेरिका आ गए। कुछ ही दिन में लैटिन अमेरिका जाना है।
सादर
आदरणीय सुश्री नीलम उपाध्याय जी , रचना को मान देने के लिए ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद , सादर।
आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी, रचना को मान देने के लिए ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद , सादर।
आली जनाब डॉ.विजय शंकर जी आदाब,जब हम कोई आवाज़ रोज़ सुनें, कोई चीज़ रोज़ पढ़ें तो उसके असरात नफसियाती(साइकोलाजी) तौर पर हमारे जीवन पर असर अंदाज़ होने लगते हैं,बहुत सुंदर गम्भीर प्रभावशाली रचना के लिए दिल से बधाई स्वीकार करें ।
अब आपकी तबीअत कैसी है?
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