फिर एक बार
स्वाधीनता का
जश्न मनाया हमने।
पर अभी भी स्वाधीनता
का अर्थ समझने
की कोशिश नहीं की हमने।
स्वाधीन होने का मर्म अभी भी ,
समझ में नहीं आया हमें।
स्वाधीन होने के भाव में
स्वयं अपने आधीन हो
जाने का बोध क्यों कर
समझ में नहीं आता हमें ,
या क्यों नहीं भाता हमें ?
स्वतंत्रता का भाव क्यों
बार बार टकरा जाता है
हमारे स्वाधीनता के भाव से ,
क्यों नहीं मुक्त होने देता हमें
हमारी पराधीनता के भाव से ?
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय समर कबीर साहब , नमस्कार , आपकी पारखी नज़र के साथ आपकी सटीक टिप्पणी के लिए ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद , सादर।
आदरणीय सुरेंद्र नाथ कुशक्षत्रप जी , कविता पर आपकी बधाई हेतु ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद , सादर।
आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी , नमस्कार , प्रस्तुत कविता को मान देने के लिए आपका आभार एवं धन्यवाद , सादर।
आदरणीय सुश्री बबीता गुप्ता जी , इस छोटी सी कविता को स्वीकार कर मान देने के लिए आपका आभार एवं धन्यवाद , सादर।
आली जनाब डॉ.विजय शंकर जी आदाब,ग़ुलामी के असरात आज भी ज़ह्न पर हावी हैं,जो कुछ समझने नहीं देते,सच्ची कविता,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय विजय शंकर जी आदाब,
पराधीनता का भाव ही हमें मुक्त नहीं होने देता है , सही कहा आपने । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
दासता की सोच अभी भी कही चपकी हुई हैं, सटीक पंक्तिया ,बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय सरजी।
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