टुकड़ों में बटा आदमी
टुकड़ों की बात करता है ,
टुकड़ों को छोटे , और छोटे
टुकड़ों में तोड़ने की बात करता है।
टुकड़ों से अलग अलग बात करता है ,
आज इसकी कल उसकी बात करता है
पर टुकड़ों को जोड़ने से डरता है
और टुकड़ों के खुद जुड़ने से भी डरता है।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सुरेंद्र नाथ सिंह कुशक्षत्रप जी , आपका ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद, सादर।
आद0 डॉ विजय शंकर जी सादर अभिवादन। बढिया भाव सम्प्रेषण के लिए बधाई निवेदित है।
आदरणीय डाo छोटे लाल जी ,आपका ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद , सादर।
आदरणीय बृजेश कुमार जी , हार्दिक आभार एवं धन्यवाद , सादर।
वाह डॉ साहब बहुत ही यथार्थ परक जीवंत पंक्तियाँ बधाई कुबूल कीजिए
अच्छी सारगर्भित कविता..
आदरणीय अजय तिवारी जी , हार्दिक आभार एवं धन्यवाद , सादर।
आदरणीय विजय जी, बहुत अच्छी कविता हुई है. हार्दिक बधाई
आदरणीय समर कबीर साहब , नमस्कार , आपकी सद्भवनाओं से परिपूर्ण विवेचना के लिए ह्रदय से आभार एवं बधाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद , सादर।
आदरणीय तेजवीर सिंह जी ,आपकी सद्भवनाओं के लिए आभार एवं बहुत बहुत धन्यवाद , सादर।
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