बहुत कुछ , बहुत हास्यास्पद है ,
फिर भी किसी को हंसी आती नहीं।
बहुत कुछ , बहुत दुखदायी है ,
फिर भी आंसू किसी को आते नहीं।… 1.
बाज़ार भी अजीब जगह है
जहां आप शाहंशाह होकर भी
रोज बिक तो सकते हैं , पर एक
दिन को भी अपनी पूरी हुकूमत में ,
पूरा बाज़ार खरीद नहीं सकते ………. 2 .
बहुत शिकायतें हैं हवा से
कि बुझा देती हैं चिरागों को ,
चलो एक चिराग ही बिना
हवा के जला के दिखा दो। ……….. 3 .
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय महेंद्र कुमार जी , साहित्य सेवा में , मेरे विचार से , यह निहित है कि हम अपने परिवेश के प्रति सजग रहें और उसे अपने लेखन में भी सम्मलित करें। रचना पर आपकी उपस्थिति एवं सुखद प्रतिक्रया के लिए आभार एवं हार्दिक धन्यवाद , सादर।
आदरणीय सुरेंद्र नाथ सिंह कुशक्षत्रप जी , रचना पर आपकी उपस्थिति एवं सुखद प्रतिक्रया के लिए आभार एवं हार्दिक धन्यवाद , सादर।
आदरणीय सुशील सरना जी , रचना पर आपकी उपस्थिति एवं सुखद प्रतिक्रया के लिए आभार एवं हार्दिक धन्यवाद , सादर।
आप मेरे पसन्दीदा लेखक रहे हैं,और आपकी कमी मुझे पटल पर बराबर महसूस होती रही,ये तो मैं समझ गया था कि आप यक़ीनन कहीं उलझे हुए हैं,लेकिन इतने परेशान हैं ये आपकी बातों से पता चला,आपकी परेशानियों को मैं महसूस तो कर सकता हूँ लेकिन अफ़सोस कि कोई मदद नहीं कर सकता,बस दुआ गो हूँ कि अल्लाह आपको जल्द इन परेशानियों से निकाले, आपके हालात एक शैर में बयान किये जा सकते हैं:-
'कल मिला वक़्त तो ज़ुल्फ़ें तेरी सुलझा दूँगा
आज उलझा हूँ ज़रा वक़्त को सुलझाने में'
हमेशा की तरह उम्दा क्षणिकाएँ हैं आदरणीय Dr. Vijay Shankar जी। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। अपनी टिप्पणी में आपने बिल्कुल सही बात कही है, आदमी आज वाक़ई चलता-फिरता कार्यालय बन गया है। ईश्वर से प्रार्थना है कि आप जल्द स्वस्थ हों। सादर।
आदरणीय समर कबीर साहब, नमस्कार , आपका प्रश्न , "आजकल आपके दर्शन पटल पर कम हो गए हैं,बहुत दिम बाद आज आपकी प्रस्तुति देखने को मिली । " पढ़ कर अच्छा लगा। किसी ने खैरियत तो पूछी। उत्तर में बहुत कुछ लिखा जा सकता है , वह भी साहित्य ही होगा। पर शायद कोई ध्यान नहीं देगा , दो चार को छोड़ कर। अतः संक्षेप में , यूं तो मैं अक्सर अमेरिका में रहता हूँ , पर भारत में भी रहता हूँ। गत तीन वर्षों से कुछ पारिवारिक कारणों से विदेश में लगातार रहना पड़ गया , लौटा तो बहुत से काम थे जिन्हें निपटाना था , अतः आते ही उनमें उलझ गया। पिछले कुछ समय से विदेश से लौटने पर प्रदूषण से जूझना और बीमार पड़ना भी एक नियम सा बन गया है अतः कुछ दिन अस्पताल में भर्ती रहना , उसके बाद डॉक्टर के निर्देशानुसार सावधानी हेतु घर में बंद रहना , बाहर न निकलना , खुद को प्रदूषित परिवेश से दूर रखने की हिदायतें , साथ ही काम निपटाने की अनिवार्यताएं , सब मिला कर व्यस्त रहना उससे अधिक बार-बार खटखटाने पर भी किसी भी काम का समय पर न निपट पाना , नियति सी बन गई है। सरकारी तो सरकारी अब तो प्राइवेट संस्थाएं भी , बैंक भी , कई कई चक्कर लगवाती हैं , नया के वाई सी बनवाइए , पहले एक ए टी एम
एक्सपायर होने पर स्वतः दूसरा आ जाता था अब उसके लिए भी फार्म भरिये और प्रतीक्षा कीजिये , उप डेशन में भी टाइम लगता है , नई फोटो लाइए , इतना डाक्यूमेंटेशन बढ़ गया है कि आदमी स्वयं में एक चलता फिरता कार्यालय बन गया है। इतने दिन गैस नहीं ली तो वहां भी जाइये और के वाई सी पूरा कीजिये। जिंदगी का बहुत बड़ा हिस्सा बीत गया एक हस्ताक्षर ही पहचान था अब तो कम से कम दो पहचान-पत्र लाइए , इतने फोटो कॉपी चाहिए , लगता है , फोटो कॉपी का रोजगार काफी बढ़ रहा है। कोई काम समय से होता नज़र नहीं आता , लंच - टाइम छोड़ कर , वह भी कंस्यूमर के लिए प्रतीक्षा का समय होता है। इनमें से बहुत सी बातों के लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं अतः किस्से कहें और क्योंकर कहें। गति के साथ सुरक्षा लिए गत्यावरोध भी जरूरी है। लंच - टाईम में यदि बैंक में बाहर धूप में खड़े रहिये , गेट लंच टाइम समाप्त होने पर खुलेगा। नियम भी कोई चीज़ होती है , पालन तो करना ही है। ..... इस पर भी अपने सामाजिक दाइत्व , घर के काम , बस , अरे नहीं और भी बहुत कुछ है पर शायद हम स्वयं भी निरपेक्ष हैं उन बातों के लिए। सब जागरूकता बढ़ाने में लगे हैं , दूसरों की। खुद सोये हुए हैं , चिंतन का विषय यह भी है की सर्विस-टैक्स है पर सर्विस प्रोवाइडर के लिए नियम कहाँ हैं ? यह गंभीर रूप से विचारणीय है। बस यही कुछ व्यस्तता है , ऐसे में क्या लिखना , कैसे लिखना ....... . फिर भी लिखना तो है ही , कोशिश जारी है।
आपकी पकड़ और आपकी प्रतिक्रियाओं का कुछ कहना नहीं , लेखन का सटीक मूल्यांकन हो जाता है। उसके लिए ह्रदय से आभार रचना आपको पसंद आई , धन्यवाद , सादर।
आदरणीय सुश्री उषा जी , आपकी उपस्थिति एवं भावपूर्ण प्रतिक्रया के लिए आभार एवं धन्यवाद , सादर।
आदरणीय डॉ विजय शंकर जी हर मानवीय पहलू को उजागर करती इन बेहतरीन क्षणिकाओं की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई सर।
जनाब डॉ.विजय शंकर जी आदाब, आजकल आपके दर्शन पटल पर कम हो गए हैं,बहुत दिम बाद आज आपकी प्रस्तुति देखने को मिली ।
इंसानी फ़ितरत और उसकी परेशानियों को बहुत सलीक़े से क़लम बन्द किया है आपने,मैं इसे आपकी महारत मानता हूँ,बहुत उम्दा और प्रभावशाली क्षणिकाएँ हुई हैं,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
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