क्या फरक पड़ता है ,
कुछ पढ़े-लिखे लोगों ने
आपको और आपकी
किसी भी बात को नहीं समझा।
आपको , आप जैसे लोगों ने तो
समझा और खूब समझा।
आपकी नैय्या उनसे और
उनकी नैय्या आपसे
पार लग ही रही है ,
आगे भी लग जाएगी ।
- मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आद0 विजय शंकर जी सादर अभिवादन।बढिया रचना से रूबरू करवाया आपने। बधाई
आली जनाब डॉ.विजय शंकर जी आदाब,बहुत दिनों बाद आपकी रचना के दर्शन हुए ।
बहुत ख़ूब वाह, सुंदर और प्रभावशाली कविता,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें । शीर्षक और पहली पंक्ति में 'फरक' को "फ़र्क़" कर लें ।
मुझे अपनी ग़ज़ल का एक शैर याद आ गया :-
'इक जाहिल को समझा सकते हैं जितनी आसानी से
उतना ही मुश्किल समझाना पढ़े लिखे नादानों को'
आ. भाई विजय जी बहुत खूब लिखा । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय विजय जी, बहुत अच्छा व्यंग! इस काव्य-प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई.
वाह आदरणीय खूब लिखा..
इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई |
वाह! वाह!! कितना कड़वा सच लिखा है आपने । सचमुच हम आज एक ऐसे वातावरण में जीने को अभिशप्त हैं जहाँ हमारा पढ़ा-लिखा होना कोई मायने नहीं रखता है । पढ़-लिखकर हम अपने आपको शर्मिंदा महसूस करते हैं । हम भयभीत उच्च शिक्षित हैं । बहुत ही कटाक्षपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय विजय शंकर जी ।
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