बीत गया भीगा चौमासा । उर्वर धरती बढती आशा ।
त्योहारों का मौसम आये। सेठ अशर्फी लाल भुलाए ।|
विघ्नविनाशक गणपति देवा। लडुवन का कर रहे कलेवा
माँ दुर्गे नवरात्रि आये । धूम धाम से देश मनाये ।
विजया बीती करवा आया । पत्नी भूखी गिफ्ट थमाया ।
जमा जुआड़ी चौसर ताशा । फेंके पाशा बदली भाषा ।।
एकादशी रमा की आई । वीणा बाग़-द्वादशी गाई ।
धनतेरस को धातु खरीदें । नई नई जागी उम्मीदें ।
धन्वन्तरि की जय जय बोले । तन मन बुद्धि निरोगी होले ।
काली पूजा बंगाली की । लक्ष्मी पूजा दीवाली की ।।
झालर दीपक बल्ब लगाते । फोड़ें बम फुलझड़ी चलाते ।
खाते कुल पकवान खिलाते । एक साथ सब मिलें मनाते ।
लाल अशर्फी फड़ पर बैठी | रहती लेकिन किस्मत ऐंठी ।
फिर आया जमघंट बीतता | बर्बादी ही जुआ जीतता ।।
लाल अशर्फी होती काली | कौड़ी कौड़ी हुई दिवाली ।
भ्रात द्वितीया बहना करती | सकल बलाएँ पीड़ा हरती ।
चित्रगुप्त की पूजा देखा । प्रस्तुत हो घाटे का लेखा ।
सूर्य देवता की अब बारी। छठ पूजा की हो तैयारी ।।
Comment
आभार आदरणीय सौरभ सर , आदरणीय रक्ताले जी ।।
आदरणीय रविकर जी
सादर, बारिश के बाद के त्योहारों कि उमंग से आपने भिगोकर फिर तर कर दिया है. कहीं कहीं जों हास्य उत्पन्न हुआ है वह मन को और भी आनंदित कर देता है.हार्दिक बधाई स्वीकारें.
ग्यारस तक मनाओ दिवाली,फिर देवों के उठने की बारी.
फिर पूतों कि चली घुड़सवारी, देवशयन तक रहेगी जारी.
अपने सुख-पर्वों की जोती । दुर्गापूजा से शुरु होती ॥
बहुत बधाई रविकर भाई । सकल काल की कथा सुनाई ॥
शुभ-शुभ
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