( ये कविता सूरज को दीपक दिखाने के बराबर है फिर भी मेरी तरफ से ओबीओ के सम्मान मे एक तुच्छ सी भेट, )
खुली किताब ( OPEN BOOK )
ये खुली किताब है बडी अनोखी, है गद्य-पद्य रचना की बेदी।
डाले इसमे वो आहुति, जो है सृजन का सच्चा पूजारी ।
पाकर गुणीजन का अशीष, हर रचना सम्पूर्ण हो जाती ।
विविध रसो मे डुबी रचना, पढ आत्मा हर्षित हो जाती ।
ये खुली किताब है बडी अनोखी, नौ रस की सरिता बहाती ।
हर शब्द डुब कर इस सरिता मे, एक रसभरी रचना बन जाती ।
कही हास्य के तीर चलाती , कही विरह का नीर बन जाती ।
कही श्रंगार से सजी धजी, बन प्रियेसी प्रियतम को रिझाती ।
कही नन्ही सी बच्ची बन कर, माँ की ममता को बढाती ।
कही रुद्र रुप धरे शिवा का, कही काली बन दुर्जंन को डराती ।
कही देशप्रेम की ओढ चुनारिया ,दुशमन के खट्टे दाँत कराती ।
कही मानवता की देख बली, मन घृणा से भर जाती ।
तलवार तो तन घायल करती , रचना मन मे घाव बनाती ।
ये खुली किताब है बडी अनोखी, नौ रस की सरिता बहाती ।
"मौलिक व अप्रकाशित"
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