प्रकृति का संगीत है पर्यावरण ,
वनसम्पदा का प्रतीक पर्यावरण |
कोयल की कूक,पंछी की चहक,
फूलो की महक,झरनों की छलक ,
रंगीं धरती का गीत है पर्यावरण |
प्रदूष्ण ने फैलाया है जाल ,
लिपटी धरा उसमें है आज
बचाना है धरती का आवरण |
कटे पेड़ों से बिगड़ा आकार ,
चहुँ ओर फैला है हाहाकार ,
टूटें तार ,सुना है पर्यावरण |
आओ मिल लगायें नये पेड़ पौधे ,
सूनी धरा में खुशियाँ नई बो दे ,
नये स्वर बनाएं रंगीं पर्यावरण |
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प्रकृति का संगीत है पर्यावरण ,
वनसम्पदा का प्रतीक पर्यावरण |
कोयल की कूक,पंछी की चहक,
फूलो की महक,झरनों की छलक ,
रंगीं धरती का गीत है पर्यावरण |
प्रदूष्ण ने फैलाया है जाल ,
लिपटी धरा उसमें है आज
बचाना है धरती का आवरण |
आह क्या खूबसूरत कविता है...प्रकृति और पर्यावरण के प्रति जुड़ाव और अलग और प्रयावरण को बचाने का आह्वान करती सुंदर कृति के लिए कोटि कोटि बधाइयाँ !
रेखा जी
सादर, पर्यावरण के प्रति जाग्रत करती सुन्दर रचना. बधाई.
प्रभाकर जी बहुत बहुत धन्यवाद ,आशा है आप आगे भी मेरा उत्साह बढ़ाते रहें गे |
बेहद प्रभावशाली और सारगर्भित रचना कही है आद. रेखा जोशी जी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
thanks
धन्यवाद अरुण जी |आपका आभार
इस सामयिक संदेशपरक रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया रेखा जी -
आओ मिल लगायें नये पेड़ पौधे ,
सूनी धरा में खुशियाँ नई बो दे ,
नये स्वर बनाएं रंगीं पर्यावरण |
इस स्वर में हमारा संकल्प छुपा है !!
आओ मिल लगायें नये पेड़ पौधे ,
सूनी धरा में खुशियाँ नई बो दे ,
khoobsurat sandesh Badhai sweekar karein....
कोयल की कूक,पंछी की चहक,
फूलो की महक,झरनों की छलक ,
कटे पेड़ों से बिगड़ा आकार ,
चहुँ ओर फैला है हाहाकार ,
टूटें तार ,सुना है पर्यावरण ....
भ्रमर जी ,कमेन्ट देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ,आशा है किआप आगे भी इसी तरह मेरा उत्साह बढाते रहे गे |आभार
thanks
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