प्रकृति का संगीत है पर्यावरण ,
वनसम्पदा का प्रतीक पर्यावरण |
कोयल की कूक,पंछी की चहक,
फूलो की महक,झरनों की छलक ,
रंगीं धरती का गीत है पर्यावरण |
प्रदूष्ण ने फैलाया है जाल ,
लिपटी धरा उसमें है आज
बचाना है धरती का आवरण |
कटे पेड़ों से बिगड़ा आकार ,
चहुँ ओर फैला है हाहाकार ,
टूटें तार ,सुना है पर्यावरण |
आओ मिल लगायें नये पेड़ पौधे ,
सूनी धरा में खुशियाँ नई बो दे ,
नये स्वर बनाएं रंगीं पर्यावरण |
Comment
प्रदूष्ण ने फैलाया है जाल ,
लिपटी धरा उसमें है आज
बचाना है धरती का आवरण |
कटे पेड़ों से बिगड़ा आकार ,
चहुँ ओर फैला है हाहाकार ,
सुन्दर सन्देश देती रचना अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए इस का ध्यान रखना बहुत जरुरी है .. ...भ्रमर ५
भावेश जी ,रचना सराहने पर आपका बहुत बहुत धन्यवाद | thanks
Nilansh ji ,thanks ,hope to receive comments in future also ,
Aashish ji ,thanks for the nice comment.
राजेश जी ,उत्साहवर्धक कमेन्ट के लिए धन्यवाद thanks
thanks
बागी जी आपको रचना पसंद आई ,धन्यवाद
आदरनीय प्रदीप जी ,आपके कमेंट्स हमेशा मेरा उत्साह बढाते है धन्यवाद
आदरणीया रेखा जोशी जी, पर्यावरण पर अच्छी रचना प्रस्तुत की है, बधाई आपको |
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