22 22 22 22 -
जिस दम सूरज ढल जाएगा
रात का जादू चल जाएगा
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सँभल के चलना सीख लें वर्ना
कोई तुझको छल जाएगा
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दुनिया का दस्तूर यही है
आज जो है वो कल जाएगा
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बचपन के दिन याद आएँगे
जिस्म जवां जब ढल जाएगा
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ग़म से यारी करना सीखो
वक़्त बुरा भी टल जाएगा
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अँगारे मत बोना घर में
घर आँगन सब जल जाएगा
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मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय सौरभ जी,
आपकी मुहब्बत और बधाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ,आप सभी चाहने वालों के लिए एक शेर नज़्र हैं ,
जो औरों के खुशिओं में खुश होते हैं !!
उनका भी घर खुशिओं से भर दे मौला !!
आदरणीय गणेश जी,
आपकी मुहब्बत और दाद की लिए बहुत बहुत शुक्रिया ,आप यूँ ही अपनी नज़रे इनायत बनाए रखें ,
सभी अशआर अच्छे हैं, अंतिम शेर बहुत ही बढ़िया लगा, कुल मिलाकर प्रस्तुत ग़ज़ल दाद के काबिल है, दाद कुबूल करें आदरणीय सलीम साहब |
भाई सलीमरज़ा साहब, एक अच्छी ग़ज़ल के लिए शुक्रिया. बहुत खूब !
इस शेर पर विशेष बधाई कह रहा हूँ -
अँगारे मत बोना घर में !
घर आँगन सब जल जाएगा !!
शुक्रिया..
वाह भाई सलीम रजा साहब बेहद लाजवाब ग़ज़ल कही है, दिली दाद कुबूलें. सादर
बहुत सुगम और सरल प्रवाह लिए सीधी सी मगर काम की बात और प्यारी सी नसीहत . मुबारक हो सलीम भाई .
सम्हल के चलना सीखो वर्ना! | ||
तू दुनिया में छल जाएगा !!
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