||ग़ज़ल|
हमसफ़र तुमसा प्यारा मिले न मिले !
साथ मुझको तुम्हारा मिले न मिले !
इश्क़ का कर दे इज़हार तन्हा है वो !
ऐसा मौक़ा दुबारा मिले न मिले !
जीले खुशिओं की पतवार है हाँथ में !
बहरे ग़म में किनारा मिले न मिले !
वो भी होते तो आता मज़ा और भी !
फिर सुहाना नज़ारा मिले न मिले !
साँस बनकर रहो धड़कनों में मेरी !
ज़िन्दगी फिर खुदारा मिले न मिले !
माँ की शफ़क़त जहाँ में बड़ी चीज़ है !
ये मुहब्बत की धारा मिले न मिले !
आज जी भर के दीदार कर ले रज़ा !
चाँद का ये नज़ारा मिले न मिले !
Comment
बहुत खूब श्री सलीम जी इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई
माँ की शफ़क़त जहाँ में बड़ी चीज़ है !
ये मुहब्बत की धारा मिले न मिले !
वाह !!
इश्क़ का कर दे इज़हार तन्हा है वो !
ऐसा मौक़ा दुबारा मिले न मिले !..... क्या खूब फरमाया है... वाह !!!
वो भी होते तो आता मज़ा और भी !
फिर सुहाना नज़ारा मिले न मिले
सहज खूबसूरती से लिखी गयी ग़ज़ल
सादर वेदिका !
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