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GAZAL-हमसफ़र तुमसा प्यारा मिले न मिले ! SALIM RAZA REWA

                ||ग़ज़ल|
हमसफ़र तुमसा प्यारा मिले न मिले !
साथ मुझको तुम्हारा मिले न मिले !

इश्क़ का कर दे इज़हार तन्हा है वो !
ऐसा मौक़ा दुबारा मिले न मिले !

जीले खुशिओं की पतवार है हाँथ में !
बहरे ग़म में किनारा मिले न मिले !

वो भी होते तो आता मज़ा और भी !
फिर सुहाना नज़ारा मिले न मिले !

साँस बनकर रहो धड़कनों में मेरी !
ज़िन्दगी फिर खुदारा मिले न मिले !

माँ की शफ़क़त जहाँ में बड़ी चीज़ है !
ये मुहब्बत की धारा मिले न मिले !


 आज जी भर के दीदार कर ले रज़ा !
चाँद का ये नज़ारा मिले न मिले !

  • शायर सलीम रज़ा रीवा

Views: 856

Comment

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Comment by Abhinav Arun on February 16, 2013 at 8:18am

बहुत खूब श्री सलीम जी इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई 

 माँ की शफ़क़त जहाँ में बड़ी चीज़ है !
ये मुहब्बत की धारा मिले न मिले !

वाह !!

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on February 15, 2013 at 11:37pm

इश्क़ का कर दे इज़हार तन्हा है वो !
ऐसा मौक़ा दुबारा मिले न मिले !.....  क्या खूब फरमाया है... वाह !!!

Comment by वेदिका on February 15, 2013 at 8:15pm

वो भी होते तो आता मज़ा और भी !
फिर सुहाना नज़ारा मिले न मिले

 

सहज खूबसूरती से लिखी गयी ग़ज़ल 

सादर वेदिका !

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