आप विश्वास करें आशा जी, जो अपने लिखा है और कुछ नहीं बल्कि एक निहायत खूबसूरत गज़ल ही है ! आप फरमाती हैं की आपके आ'शार महज़ आपके दिल के जज़्बातों की तर्जुमानी है, ये आपकी बुलंद शख्सियत और तहममुल-मिजाज़ी का सबूत है ! वेसे भी क्या हिरण को ये बात मालूम होती है कि उसकी नाभि में कस्तूरी मौजूद है? किसी ज़माने में शायरी का जुनून रहा है इस लिए चंद अल्फ़ाज़ लिखने की हिमाकत की, मैं अगर आपके किसी भी काम आ सकूँ तो मुझे दिली मसररत होगी ! परम पिता परमेश्वर आपकी क़लम को ताक़त बख़्शे !
Didi Pranam, Meri koi badi bahan nahi hai Aashirbad deney waali, 2 chhoti bahaney hai jo kewal aashirvad mangti hi rahati hai,hahahahaha, Mai aap mey apani badi bahan ko dekhta hu, Please aap merey sar par apani hath rakh dijiyey, yahi merey liyey bahut hai,
दीदी प्रणाम, आप की कविता पोस्ट कर के मुझे भी बहुत अच्छा लगा, आज आप Open Books Online परिवार मे जुड़ी हम सब को बहुत ही अच्छा लगा, आप जैसे लोगो के आशिर्वाद कि हम सब को बहुत ही आवश्यकता है, मै इस साईट को केवल इसी उद्देश्य से बनाया है कि लोगो का रूझान हिन्दी साहित्य के तरफ किया जाय, अभी तक तो जिसने भी साईट देखा है सराहा ही है, आगे मुझे हमेशा आप सब से मार्गदर्शन कि आवश्यकता रहेगी । दीदी आप को जानकर प्रसन्नता होगी कि आप की कविता को यहा काफी सराहा गया है,
Aapka
Ganesh Jee "bagi"
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Asha pandey ojha's Comments
Comment Wall (43 comments)
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मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
तूं अपना बरबादे-हाल न कर
चांदनी की चाह में यूं न पगला
इन अंधेरों से विसाल न कर...wah bahut khoob...sunder rchna
really fantastic
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
ees link par clear browsing history ka tarika bataya hai, dekh lijiyey shayad aapko help mil jay
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
http://www.openbooksonline.com/profiles/blogs/5170231:BlogPost:2804
प्रधान संपादकयोगराज प्रभाकर said…
यह ग़ज़ल मैने 1988 में कही थी, बहुत से शेयर भूल चुका हूँ - मगर जो कुछ भी याद है आज बतौर-ए-ख़ास आपकी नज़र कर रहा हूँ !
नफरत का अन्धकार यूं फैला दिखाई दे
नाम-ओ-निशान अमन का मिटता दिखाई दे !
काशी दिखाई दे कभी का'बा दिखाई दे,
नन्हा सा बच्चा जब कोई हँसता दिखायी दे !
जिनको भी ऐतमाद है अपनी उड़ान पर
उनको आसमान भी छोटा दिखाई दे !
वो शख्स जिसकी नींद ही खुलती हो शाम को,
उसको ये आफताब क्यूँ चढ़ता दिखाई दे !
खिड़की ही जब नहीं है कोई घर के सामने,
फिर कैसे भला चाँद का टुकड़ा दिखाई दे !
श्रद्धा नहीं तो हर नदी पानी के सिवा क्या ?
श्रद्धा हो ग़र तो हर नदी गंगा दिखाई दे !
प्रधान संपादकयोगराज प्रभाकर said…
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
Aapka
Ganesh Jee "bagi"
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