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Zaif
  • Male
  • Uttarakhand
  • India
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Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-159
"आ. रचना जी, वाह, अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकारें। सादर। "
Thursday
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-159
"आ. ऋचा जी, अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकारें। सादर।  "
Thursday
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-159
"आ. अजय जी, अच्छी ग़ज़ल कही आपने। सादर।  "
Thursday
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-159
"आ. Nahak जी, बहुत आभार आपका। सादर।  "
Thursday
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-159
"आ. रचना जी, बहुत आभार आपका। सादर।"
Thursday
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-159
"आ. अमित जी, बहुत आभार आपका। सादर।  "
Thursday
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-159
"आ. अमित जी, बहुत आभार आपका। सादर।"
Thursday
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-159
"बेहद शुक्रिया, आ. समर सर, 'रुलवा' शब्द के स्थान पर कौन सा शब्द लेना उचित होगा? कृपया मार्गदर्शन करें। सादर।"
Thursday
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-159
"आ. Nahak जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है। बधाई स्वीकार करें। सादर।"
Wednesday
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-159
"आ. Munish जी, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास रहा। अमित जी के सुझाव भी ख़ूब। सादर।"
Wednesday
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-159
"आ. अमीर जी, हमेशा की तरह अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकारें। सादर।"
Wednesday
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-159
"आ. संजय जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है। गुणीजन की इस्लाह से निखार आएगा। बधाई स्वीकारें। सादर।"
Wednesday
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-159
"221 2121 1221 212 नाशाद ज़िंदगी थी, सो ठुकरा गई मुझे फ़ुर्क़त-नसीबी की यूँ घुटन खा गई मुझे मुझको बड़ा गुमान था अपनी बुलंदी पर इक चोट नींव पर लगी और ढा गई मुझे यूँ ज़िंदगी गुज़र ही रही थी किसी तरह फिर किसलिए वो बे-वफ़ा याद आ गई मुझे  दिखला सकी न…"
Wednesday
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"आ. अजय गुप्ता 'अजेय  जी, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास, बधाई स्वीकारें। सादर।"
May 26
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"आ. Ravi Shukla  जी, अच्छी ग़ज़ल हुई. बधाई स्वीकार करें। सादर।"
May 26
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-155
"आद. Dr. Ashok Goyal  जी,,, अच्छी ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। यार चहरे बदलना मुमकिन है  आइने थोड़े ही बदलते हैं ...  दर्द,तन्हाई,ज़ख़्म,ग़म, आँसू । इश्क़ के तौर कब बदलते हैं ... वाह।  "
May 26

Profile Information

Gender
Male
City State
Almora Uttrakhand
Native Place
Almora
Profession
Working
About me
Passionate writer

(तरही ग़ज़ल - अब तुमसे दिल की बात कहें क्या ज़बाँ से हम)
221 2121 1221 212

भागें कहाँ तलक ग़मे-आहो-फ़ुगाँ से हम
जाऐंगे तेरे इश्क़ में इक रोज़ जाँ से हम

बोला था सच, पलट नहीं पाए बयाँ से हम
अब तंग आ चुके हैं ख़ुद अपनी ज़बाँ से हम

लो देखते ही देखते सब सफ़्हे जल पड़े
क्या लिख गए सियाही-ए-सोज़े-निहाँ से हम!

इक फूल था कि मुरझा गया सर-ए-गुलसिताँ
इक उम्र थी कि गुज़रे थे दौरे-ख़िजाँ से हम

आओ सिखा दूं तुमको निगाहों की गुफ़्तगू
अब तुमसे दिल की बात कहें क्या ज़बाँ से हम

आना नहीं था उसको नहीं आया 'ज़ैफ़' वो
सर पीटते ही रह गए उस आस्ताँ से हम

© मौलिक व अप्रकाशित

Zaif's Blog

ग़ज़ल - थामती नहीं हैं पलकें अश्कों का उबाल तक (ज़ैफ़)

 212 1212 1212 1212 

थामती नहीं हैं पलकें अश्कों का उबाल तक

भूल-सा गया है दिल भी, धड़कनों की ताल तक 

दो दिलों की दास्ताँ न कोई समझा है यहाँ 

अपना इश्क़ आ ही पहुँचा जुर्म के मलाल तक 

ऐ ख़ुदा, रखूँ मैं तुझसे रहमतों की आस क्या

मैं पहुँचता ही नहीं कभी तेरे ख़याल तक 

हाय! आ रहा है प्यार झूठे ग़ुस्से पर तेरे 

लाल शर्म से पड़े हैं यार, तेरे गाल तक 

आशना तुझे कहा है मैंने जाने किसलिए

पूछता…

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Posted on January 12, 2023 at 7:30pm — 2 Comments

ग़ज़ल (ज़ैफ़)

2122 1212 22/112

इश्क़ में दिल-जले नहीं होते

काश के तुम मिरे नहीं होते

बस ज़रूरत बिगाड़ देती है

लोग वर्ना बुरे नहीं होते

यूँ चमत्कार रोज़ होते हैं

बस हमारे लिए नहीं होते

दोष मत दो नसीब को अपने

दुनिया में ग़म किसे नहीं होते

एक बिजली जला गई थी यूँ

ये शजर अब हरे नहीं होते

तोड़ना दिल मुझे भी आता है

काश तुम फूल-से नहीं होते

'ज़ैफ़' उनका तो हो गया लेकिन

वो…

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Posted on January 6, 2023 at 7:27pm — 7 Comments

पुरानी ग़ज़ल (ज़ैफ़)

11212 11212 11212 11212 

हैं यूँ ज़िंदगी ने सितम किए, मुझे क्या से क्या है बना दिया

मैं तो आसमाँ के सफ़र में था, मुझे ख़ाक में ही मिला दिया

ये ख़ुशी भी दर्द समेत थी, कि ग़मों के सहरा की रेत थी

जो ख़ुशी ने लाके दिया मुझे, मिरे ग़म ने उसको भी खा दिया

मिरे दिल में दर्द ही दर्द था, कि तमाम उम्र ये सर्द था

लहू सारा दिल ने उड़ेल कर यूँ नज़र के रस्ते गिरा दिया

जो दिल-ओ-जिगर से भी प्यारा था, जिसे अपना कहके पुकारा…

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Posted on December 26, 2022 at 9:17pm — 6 Comments

ग़ज़ल - सज़ा तय हुई है ख़ता के बग़ैर (ज़ैफ़)

122 122 122 12

सज़ा तय हुई है ख़ता के बग़ैर

गला जाएगा अब रज़ा के बग़ैर

मेरे सब्र की इंतिहा देखिए

शिफ़ा चाहता हूँ दवा के बग़ैर

तेरे दाम-ए-तज़्वीर की ख़ैर हो

रिहा हो गया हूँ क़ज़ा के बग़ैर

तेरी बेवफ़ाई प कबतक जियूँ

कभी इश्क़ कर ले दग़ा के बग़ैर

अजब रस्म-ए-दुनिया है क़ाबिज़ यहाँ

न कुछ भी मिले इल्तिजा के बग़ैर

अना से छुटा तो ख़याल आया है

मैं कुछ भी नहीं हूँ ख़ुदा के…

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Posted on December 24, 2022 at 2:48pm — 5 Comments

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At 10:35pm on March 18, 2014,
सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी
said…

स्वागत है , भाई यमित आपका ओ बी ओ मे ॥

 
 
 

कृपया ध्यान दे...

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