For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चेतना का द्वार

चेतना का द्वार

उठते ही सवेरे-सवेरे

चिड़ियों की चहचहाट नहीं

आकुल क्रन्दन... चंय-चंय-चंय

शायद किसी चिड़िया का बीमार बच्चा

साँसे गिनता घोंसले से नीचे गिरा था

वह तड़पा, काँपा

कुछ देर और जीने का जैसे क्रज़ लिया

उसके टूटते प्राणों से मैंने कुछ सीखा

किसी भी और दिन के समान

पूरब से आ गई प्रभात की धूप

खिलकर छा गई आँगन में

संवारती पेड़ों पर डालों के पत्तों को

निज क्रीड़ा में रत, झुक गई पल भर

चिड़िया के कांपते दम तोड़ते उस बच्चे पर

कि जैसे दे दी उसको कुछ उष्मा

फिर चलती बनी वह अपनी राह पर

उस चलती-बनी सहज-सरल धूप से मैंने

कुछ सीखा

छलक उठा उर का सागर, मैं बैठा सोचता

ऐसे में क्या, मैं कुछ कर सकता हूँ क्या ?

कोने में सूखी पड़ी थी कुछ घास

सोचती खुद को ”बेकार’

आज वह कुछ काम आ गई

उस घास को हथेली पर रखे

मैंने चिड़िया के बच्चे पर जैसे

डाल दी आखरी चादर

उस सूखी घास से

उस आख़री चादर से

मैंने कुछ सीखा

जाने कौओं को किसने बताया

कौन कह आया उनको कि पड़ा है यहाँ

चिड़िया का मृत बच्चा

उड़ते चले आए काँएं-काँएं करते

उनमें एक था बड़ा-सा काला कौआ

मैं कुछ डरा, वह न डरा मुझसे

मारा झपटा, चौंच में दबाए बच्चा

उड़ चला वह काला कौआ अपनी दिशा

उस काले कौए से भी मैंने 

बहुत-कुछ सीखा  ...

कि जैसे अचानक अकेले अन्धकार में

आई कोई रौशनी की किरण

मैंने ऐसे कोई नया सत्य पहचाना

गिनते बजरी-के-पत्थर हथेली में

कुछ गिरते पड़ते, मैंने उनसे कुछ जाना

खुल गया मानो चलते, चेतना का द्वार

कुछ कड़वा, कुछ मीठा है सँसार

सीखा, बहुत सीखा सबसे मैंने

न जाना फिर भी क्या होता है

"साँसारिक व्यवहार"

ग्लानि, कड़वाहट, अजीब विवशता का भान

मैं इस कोलाहल में खिंचकर क्यूँ आया 

मेरी सन्तप्त साँसो ने किस नशे में, बेहोश

क्या खोया, क्या पाया

यह सोचते, काँप उठी जैसे चकित चेतना भी

उमड़ आई कुछ अनमनी उदासी

अनुभवों से बहता गीलापन

आँगन में देखा आज यह कैसा मरण-जीवन

हुआ विवेक, आदर्श और हृदय का जैसे पहला संगम

फिर क्यूँ रूक-रूक जाती है मेरी मुसाफ़िरी धड़कन

पलते रहे हैं मुझमें क्यूँ कब से कितने प्रश्न पुराने ...

इस सँसार में रहते

इनसानी पापों से क्यूँ न सीखा मैंने

अनिवार्य है जो जीने के लिए

साँसारिक शतरंज का खेल ?

           -------

--  विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 454

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on May 13, 2020 at 5:48am

आपने रचना को सराहा, आपका हार्दिक आभार, मित्र सुरेन्द्र जी।

Comment by vijay nikore on May 13, 2020 at 5:47am

आपने रचना को सराहा, आपका हार्दिक आभार,मित्र लक्ष्मण जी।

Comment by नाथ सोनांचली on May 6, 2020 at 6:14am

आद0 विजय निकोर जी सादर अभिवादन। बेहतरीन सृजन। पढ़ते पढ़ते कब खत्म हो गया, पता ही नहीं चला। सच है इंसान प्रकृतिसे बहुत कुछ सीख सकता है। आपको कोटिश बधाई।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 5, 2020 at 8:18pm

आ. भाई विजय निकोर जी, सादर अभिवादन । भावविभोर करती इस उत्तम रचना के लिए बहुत बहुत बधाई।

Comment by Samar kabeer on May 5, 2020 at 2:55pm

//मेरे भाई, आप आए , मैं कुछ ऐसे भावुक हुआ कि नयन भीग गए//

ये अल्लाह का ख़ास फ़ज़्ल-ओ-करम और आपकी दुआएँ हैं,आपके स्नेह का मुझे दिल से अहसास है,अल्लाह से दुआ है कि वो आपको और आपके परिवार को सलामत रखे और हमें इस वबा से जल्द निजात आता फ़रमाए ।

Comment by vijay nikore on May 5, 2020 at 2:42am

मेरे भाई, आप आए , मैं कुछ ऐसे भावुक हुआ कि नयन भीग गए। आपने रचना को सराहा, आपका हार्दिक आभार, भाई समर कबीर जी।

Comment by Samar kabeer on May 4, 2020 at 3:18pm

प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब, हमेशा की तरह एक उत्तम रचना से रूबरू कराया आपने मंच को,इस बहतरीन प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
1 hour ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
13 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
15 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
16 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service