For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रेमियों केे प्रेम केे निशान बन गए

मिलते वहीँ थे घाट पे करते थे गुफ़्तगू
तेरे बगैर घाट भी वीरान बन गए

उस पार रेत से जो हमने घर बनाए थे
वो प्रेमियों केे प्रेम केे निशान बन गए

अक्सर बिताईं शामें हमने विश्वनाथ में
अब पूजते हैं उनको वो भगवान् बन गए

चर्चे हमारे इश्क़ के गलियों में खूब थे
ख़बरों में थे कभी अभी गुमनाम बन गए

किस मोड़ पर ये इश्क़ हमको लेके आ गया
जलकर तुम्हारे प्यार में शमशान बन

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 529

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on June 12, 2020 at 6:43pm

जनाब विनय प्रकाश तिवारी जी, बह्र,शिल्प,व्याकरण पर अभी आपको बहुत मिहनत करना है,अध्यन करें,इस प्रयास पर बधाई ।

Comment by Vinay Prakash Tiwari (VP) on June 11, 2020 at 8:30pm

आदरणीय मोहतरमा डिंपल शर्मा जी आपका तहे दिल से शुक्रिया

Comment by Vinay Prakash Tiwari (VP) on June 11, 2020 at 8:29pm

ज़नाब अमीरुद्दीन 'अमीर' साहब तहे दिल से शुक्रिया आपका, आपसे निवेदन रहेगा खामियों को उजागर करते रहे आप फलस्वरूप हम सीखते रहे

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on June 11, 2020 at 12:27pm

जनाब विनय प्रकाश तिवारी जी, आदाब। अच्छी कविता ( नज़्म ) कही है आपने। बधाई स्वीकार करें। 

Comment by Dimple Sharma on June 11, 2020 at 11:13am

अहा आदरणीय बहुत ख़ूब, शमशान बन गए, ग़ज़ल उम्दा हुई बधाई आपको ।

Comment by Vinay Prakash Tiwari (VP) on June 10, 2020 at 6:33pm

ज़नाब रविकर साहब आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by रविकर on June 10, 2020 at 1:38pm

सुंदर रचना है मित्रवर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
15 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service