For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ये लोग मुझे कुछ भी तो करने नहीं देते....( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)

221-1221-1221-122

ये लोग मुझे कुछ भी तो करने नहीं देते
मुश्किल है बहुत जीना ये मरने नहीं देते (1)

खोदा था कुआँ सहरा में हमने कभी मिल कर
कुछ लोग घड़े हमको वाँ भरने नहीं देते (2)

इक उम्र गुज़ारी है यहाँ मैंने सफ़र में
अब पाँव भी मंज़िल पे ठहरने नहीं देते (3)

उसने जो कहा है तो वो कर के ही रहेगा
वादे से उसूल उसको मुकरने नहीं देते (4)

छाता है कभी ज़ीस्त में जब ग़म का अँधेरा
डरता हूँ मगर दोस्त सिहरने नहीं देते (5)

अब याद नहीं है तेरी बातें तेरा शिकवा
माज़ी से मुझे लोग गुज़रने नहीं देते (6)

उड़ता है बहुत ऊँचा वो ख़्वाबों का परिंदा
उम्मीद के पर मुझको कतरने नहीं देते (7)

मिट्टी में मिला देते हैं झंडा मेरा 'सालिक'
परचम कभी चोटी पे फहरने नहीं देते (8)

मौलिक एवं अप्रकाशित
©सालिक गणवीर

Views: 631

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सालिक गणवीर on August 14, 2021 at 6:00pm

उस्ताद -ए -मुहतरम  Samar kabeer साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए शुक्रगुज़ार हूँ.जवाब देने में हुए विलम्ब के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।

Comment by सालिक गणवीर on August 14, 2021 at 5:58pm

आदरणीय Chetan Prakash  जी
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए शुक्रगुज़ार हूँ.जवाब देने में हुए विलम्ब के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।

Comment by सालिक गणवीर on August 14, 2021 at 5:58pm

आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर'  जी
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए शुक्रगुज़ार हूँ.जवाब देने में हुए विलम्ब के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।

Comment by सालिक गणवीर on August 14, 2021 at 5:56pm

आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए शुक्रगुज़ार हूँ.जवाब देने में हुए विलम्ब के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।

Comment by Samar kabeer on August 9, 2021 at 6:23pm

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'ये लोग मुझे कुछ भी तो करने नहीं देते
मुश्किल है बहुत जीना ये मरने नहीं देते'

मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,उचित लगे तो सानी यूँ कर लें:-

'मरना मैं अगर चाहूँ तो मरने नहीं देते'

Comment by Chetan Prakash on August 7, 2021 at 3:25pm

नमन, भाई   सालिक गणवीर  जी! मुझे  तो आपकी यह ग़ज़ल अपेक्षाकृत  बेहतर  प्रतीत हुई  । सुखद सुधार के स्पष्ट  लक्षण हैं । शुभ कामनाएँ, भविष्य हेतु !

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 7, 2021 at 11:23am

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है बधाई स्वीकार करें। सादर। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 7, 2021 at 10:40am

आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । सुन्दर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service