For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - इक अधूरी 'आरज़ू' को उम्र भर रहने दिया

वज़्न -2122 2122 2122 212

ख़ुद को उनकी बेरुख़ी से बे- ख़बर रहने दिया
उम्र भर दिल में उन्हीं का मुस्तक़र* रहने दिया (ठिकाना)

उनकी नज़रों में ज़बर होने की ख़्वाहिश दिल में ले
हमने ख़ुद को ज़ेर उनको पेशतर रहने दिया

उम्र का तन्हा सफ़र हमने किया यूँ शादमाँ
उनकी यादों को ही अपना हमसफ़र रहने दिया

उनसे मिलकर जो कभी होती थी इस दिल को नसीब
अपने ख़्वाबों को उसी राहत का घर रहने दिया

वो न आएँगे शब- ए- फ़ुर्क़त में ये तय था मगर
इक ख़याल- ए- क़ुर्ब हमने ता- सहर रहने दिया

ज़िंदगी की मुश्किलें आसान करने के लिए
शुक्र है तूने ख़ुदा मुझ में हुनर रहने दिया

ना-मुकम्मल शय किसे अच्छी लगीं हम ने मगर
इक अधूरी 'आरज़ू' को उम्र भर रहने दिया

-©अंजुमन 'आरज़ू' 

स्वरचित एवं अप्रकाशित

Views: 447

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 7, 2021 at 5:03am

आ. अंजुमन जी, अभिवादन। गजल का प्रयास अच्छा है। हार्दिक बधाई। गुणीजनो की बातों का संज्ञान लें ।

और अन्य लेखकों की रचनाओं पर भी उपस्थिति दर्ज कराएँ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 2, 2021 at 4:46pm

बढ़िया ग़ज़ल कही आदरणीया...बधाई

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 19, 2021 at 10:00pm

मुहतरमा आरज़ू अंजुमन साहिबा आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें।

मतले के शिल्प में तकनीकी गड़बड़ है।

'ख़ुद को उनकी बेरुख़ी से बे- ख़बर रहने दिया  ...कैसे ? आप तो जान रहे हैं कि वो ख़फ़ा हैं! तो आप बेख़बर कैसे हुए? अगर आप कहते कि-

उन को अपनी बेरुख़ी से बे- ख़बर रहने दिया   तो ये मुमकिन है... लेकिन अगर ऊला ऐसे कहेंगे तो सानी मिसरे में कही गई बात ग़लत होगी 

उम्र भर दिल में उन्हीं का मुस्तक़र रहने दिया'  ...मुश्किल है, क्योंकि आप तो ख़फ़ा हैं। :-)) 

'उनकी नज़रों में ज़बर होने की ख़्वाहिश दिल में ले

  हमने ख़ुद को ज़ेर उनको पेशतर रहने दिया'.       इस शे'र पर मुहतरम समर कबीर साहिब से सहमत हूँ। 'नज़रों में ज़बर' मुख़ालिफ़ैन के होना ठीक है मगर महबूब की नजरों को भाने और लुभाने की बात सही है। मिसरा सानी में ज़ेर के साथ पेशतर का नहीं, ज़बर का जवाज़ है। 

'शुक्र है तूने ख़ुदा मुझ में हुनर रहने दिया'     इस मिसरे का शिल्प ठीक नहीं है, ग़ौर फ़रमाएं 'हुनर रहने दिया' ? 

मक़्ता, तीसरा और पाँचवा  शे'र उम्दा हुए हैं।  सादर। 

Comment by Samar kabeer on October 19, 2021 at 7:45pm

मुहतरमा अंजुमन `आरज़ू ` जी आदाब , ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है बधाई स्वीकार करें I 

उनकी नज़रों में ज़बर होने की ख़्वाहिश दिल में ले
हमने ख़ुद को ज़ेर उनको पेशतर रहने दिया-ये शे`र मुझे भर्ती का लगा I 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"धन्यवाद,  आज़ाद तमाम भाई ग़ज़ल को समय देने हेतु !"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय तिलक राज कपूर साहब,  आपका तह- ए- दिल आभारी हूँ कि आपने अपना अमूल्य समय देकर मेरी ग़ज़ल…"
3 hours ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"जी आदरणीय गजेंद्र जी बहुत बहुत शुक्रिया जी।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीया ऋचा जी ग़ज़ल पर आने और हौसला अफ़जाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया जी।"
3 hours ago
Chetan Prakash commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय गिरिराज भंडारी जी । "छिपी है ज़िन्दगी मैं मौत हरदम वो छू लेगी अगर (…"
3 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service