पतझड़ हुआ विराग का
खिले मिलन के फूल
प्रेम, त्याग, आनन्द की
चली पवन अनुकूल
चिन्ता, भय,और शोक का
मिटा शीत अवसाद
शान्ति, धैर्य, सन्तोष संग
प्रकटा प्रेम प्रसाद
सरस नेह सरसों खिली
अन्तर भरे उमंग
पीत वसन की ओढ़नी,
थिर सब हुईं तरंग
शिव शक्ती का यह मिलन,
अद्भुत, अगम, अनन्त
गति मति अविचल,अपरिमित,
अव्याख्येय वसन्त
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सुशील सरन जी, सुझाव हेतु हार्दिक धन्यवाद
आदरणीय पंकज कुमार जी, प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार आपका।
आदरणीय सादर प्रणाम
आपकी रचना निःसन्देह दोहा छन्द आधारित है।
सभी दोहे भावात्मक दृष्टि से ठीक हैं...मात्र आपको मात्रा गणना पर ध्यान देना होगा और ध्यान दिया जाना आवश्यक भी है, क्योंकि आप रचना कर रही हैं अतः रचना मानकानुरूप होनी ही चाहिये।
शुभम भवतु
आदरणीय समर कबीर जी ,आदाब। सच तो यह है कि जैसे भाव आते हैं ,मैं वैसे ही लिख देती हूँ। मात्राओं की गिनती नहीं करती। लय का अवश्य ध्यान रहता है।इसी कारण अतुकान्त लिख दिया।आपकी प्रतिक्रिया पाकर हर्ष हुआ। हार्दिक धन्यवाद आपका
मुह्तरमा ऊषा अवस्थी जी आदाब, आपकी ये प्रस्तुति तो दोहों की है,आप इसे अतुकांत क्यों लिख रही हैं ?
इसुन्द्र प्रस्तुति हुई है ,बधाई स्वीकार करें I
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