१२२/१२२/१२२/१२२
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लगाओ लगाओ सदा कर लगाओ
बहुत तुच्छ है ये बड़ा कर लगाओ।।
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अभी रोटियों को अठन्नी बची है
रहे जेब खाली नया कर लगाओ।।
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कभी रक्त बहता दिखे घाव पर से
दवा छोड़ उस पर कटा कर लगाओ।।
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गया बचपना तो उसे छोड़ना मत
युवापन बुढ़ापा ढला कर लगाओ।।
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घटा धूप बारिश तजो चाँदनी मत
मिले मुफ्त क्यों ये हवा कर लगाओ।।
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जो पीते पिलाते उन्हें मुफ्त बाँटो
न पीते हुओं पर नशा कर लगाओ।।
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विलासी लगा है उदासी नहीं है
रुदन मुस्कुराहट दुआ कर लगाओ।।
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रहे हर तरफ सन्तुलन जिन्दगी में
मिलन कर लगाओ जुदा कर लगाओ।।
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ये जनता हमेशा दबी ही भली है
भला हो न हो पर बुरा कर लगाओ।।
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बड़े मूर्ख अब के विपक्षी जो चूके
तुम्हें आज मौका मिला कर लगाओ/
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Comment
आ. भाई गुमनाम जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन व स्नेह के लिए हार्दिक धन्यवाद।
आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी लेखन सफल हुआ। उत्साहवर्धन व स्नेह के लिए आभार।
वाह मुसाफिर साहब वाह
आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, वर्तमान परिदृश्य में व्यवस्था पर कड़ा कटाक्ष करती सुन्दर रचना हुई है, हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
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