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ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा

1212 1122 1212 112/22

 .

गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
नशा उतार ख़ुदाया नशा उतार मेरा.
.
बना हुआ हूँ मैं जैसा मैं वैसा हूँ ही नहीं   
मुझे मुझी सा बना दे गुरूर मार मेरा.
.
ये हिचकियाँ जो मुझे बार बार लगती हैं
पुकारता है कोई नाम बार बार मेरा.  
.
मेरी हयात का रस्ता कटा है उजलत में
मुझे भरम था फ़लक को है इंतज़ार मेरा.
.
पड़े जो बेंत मुझे उस की, दौड़ पड़ता हूँ
मैं जैसे हूँ कोई घोड़ा ये मन सवार मेरा.
.
मैं उस से बच नहीं पाता हूँ गो ख़बर है मुझे   
करे है मेरी अना रात दिन शिकार मेरा.
.
हर एक साँस बदलती है ज़र को पीतल में
न जाने हश्र में क्या दाम दे सुनार मेरा.
.
किसी नज़र से उतरते ही मर गया था मैं
जिसे समझते हो तुम जिस्म है मज़ार मेरा.
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 20

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Comment by Nilesh Shevgaonkar 11 minutes ago

धन्यवाद आ. लक्ष्मण धामी जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar 11 minutes ago

धन्यवाद आ. गिरिराज जी 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' 27 minutes ago

आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी 2 hours ago

आदरणीय नीलेश भाई , हमेशा की तरह आपकी ग़ज़ल बेहतरीन लगी , हर एक शेर  उम्दा हुए हैं 

पड़े जो बेंत मुझे उस की, दौड़ पड़ता हूँ
मैं जैसे हूँ कोई घोड़ा ये मन सवार मेरा.    -- ये शेर मेरे लिए बहुत ख़ास  है  बधाई आपको 

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