For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जिंदगी एक खुली किताब !!!

जिंदगी एक खुली किताब है,
फिर भी ये किताब खुद के पास हो,
बेहतर
जो जाने कीमत इसकी,
जो जाने इज्जत इसकी,
जो इसके पन्नो का मोल समझे,
ये किताब हो तो उसके पास हो,

जो सर से लगाये यू ,
सरस्वती का वास हो,
भला हो या बुरा हो ,
अपना समझ कर जो माफ़ करे,
कुछ सीख नयी हो सीखलाने की,
दे वो सीख मृदुल मुस्कान से ,
जिंदगी की वो खुली किताब,
हो तो उसके पास हो |

Views: 813

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on September 4, 2010 at 6:40am
नूतन जी नमस्कार....

सबसे पहले तो मैं आपके पहले ब्लॉग के लिए बधाई देता हूँ....बहुत ही बढ़िया रचना है नूतन जी...
आशा ही नहीं पूर्ण विस्वास है की आगे भी आपकी रचनाएँ पढने को मिलती रहेंगी..
Comment by Dr Nutan on September 1, 2010 at 6:24pm
जगदीश तपिश जी ..शुक्रिया आपका
पर मैं आपकी बात पर अपनी बात अपने लफ़ज़ो मेी यू कहूँगी
जालिम होता जमाना तो भरोसा करता. जो होता दिल मे तो खुल कर ब्यान करता..
ये दुनिया तहज़ीब से चलती है अब मन में हो पीर तो भी जुबां से मिश्री घोलता.( नूतन )..तो ऐसे में आज के ज़माने में भरोसा क्या कीजियेगा ये तो वक़्त की दौलत है जो सनै सनै आती है .. सादर शुक्रिया .
Comment by Dr Nutan on September 1, 2010 at 5:55pm
To dear Jaya ji..... aapne sahi kaha .. ki kitabe sahi maayne me dost hai.......par mai kabhi hanshi majaak me bhi keh deti hoo ki ..I am not a book worm... aapne bahut sundar comment kiya... sadar.. dhanyvaad

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on September 1, 2010 at 11:29am
डॉ नूतन जी,

सब से पहले तो मैं oBo परिवार में आपका हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ और आशा करता हूँ की आपका साथ हमेशा हमें मिलता रहेगा ! मुझे बहुत ख़ुशी है कि अब आप भी हमारी खुली किताब का एक बाब हो गए हैं !

आपकी कविता दिल को छू गई, आपने बिलकुल सही कहा की ज़िंदगी भी किसी खुली किताब ही की तरह है लेकिन इसको हरेक के सामने खोलकर नहीं रखा जा सकता ! इस सारगर्भित काव्यकृति के लिए दिल से साधुवाद देता हूँ ! एक शेअर आपके शेअर की नज़र :

//आप आए जो इस गुलशन में, ये लगा हमको
जैसे तार्रुफ़ किसी ने करा दिया हो बहार से !//

सादर
योगराज प्रभाकर
प्रधान सम्पादक
Comment by jagdishtapish on September 1, 2010 at 9:46am
manniya jaya ji aapne sahi farmaya --kitab hi to hamari sabse achchi dost --
naye mitra yaa nai kitabon par jara mushkil se hi bharosa kar pata hai har koi --isliye hamara manna hai purani kitaben aur purane dost hi vafadar hote hain
nai kitabon aur naye doston ko to parkhne ke bad hi bharosa kiya ja sakta hai ya un par koi ray jahir ki ja sakti hai
Comment by Jaya Sharma on September 1, 2010 at 6:56am
kitab hi to hai hamari sabse achchhi dost!
Badhiya!
Comment by Pankaj Trivedi on August 31, 2010 at 11:29pm
बहुत सुंदर.... आगे बढ़ो... स्वागत...
Comment by Dr Nutan on August 31, 2010 at 11:27pm
पहला दिन खुली किताब में
मित्रो के प्रोत्साहन से और एडमिनिस्ट्रेटर जी द्वारा मार्ग दर्शन से मैं बहुत प्रसन्न हूँ .. शायद कुछ लिखने योग्य बनूँ.. .. आप सभी का तहे दिल शुक्रिया ..
" यूं तो हुवा यहाँ आना पहली पहली बार है
पर लगता नहीं कभी ना गुजरे हो इन कुंच - ए - दीदार से.."
नूतन .. २३ :०९ .. ३१ - ०८ - २०१०
Comment by jagdishtapish on August 31, 2010 at 10:23pm
manniyaa dr nutan ji aapne hamen is yogya samjha
hradya se aabhari hain ham aapke bahut umda rachna ---zindagi ek khuli kitab hai ---there is no dout ---lekin ise apne pass rakhana chahiye --jo jane iski kimat --aur bhi achche khayal hai --apko bahut bahut badhai itni achchi rachna ke liye ---saadar ---
Comment by Pankaj Trivedi on August 31, 2010 at 10:13pm
डॉ. नूतनजी,
आपकी पहली पोस्ट - कविता - ज़िंदगी खुली किताब है... बहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति है | कुछ सीखने की बात और मृदुल मुस्कान के साथ स्वागत है... धन्यवाद |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
44 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service