For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मैंने क्या किया?

मैं जानता हूं
आप कुछ नहीं कर सकेंगे
पढ़ कर, सोचेंगे थोड़ा
या हो सकता है
बिल्कुल भी नहीं देंगे ध्यान
सही भी है
आपकी भी अपनी हैं परेशानियां
ऐसे में मेरे लिए कहां होगा समय
लेकिन फिर भी बताता हूं आपको
अपने मन की बात
बहुत परेशान करती है
छोटी-छोटी बातें
हो कोई बड़ी समस्या
तो की जा सकती है तैयारियां
मांगी जा सकती है मदद
लेकिन क्या करूं
जब समस्याएं हो छोटी-छोटी और
फैला दूं हाथ - मांगू मदद
तब लगता है
आखिर अब मैंने क्या किया?
फिर जुटाता हूं हिम्मत
निकालता हूं समस्याओं का हल
लेकिन अचानक देखता हूं क्या
फिर आ गई एक और समस्या
शायद यही है जिंदगी का सफर
कभी आसान तो कभी कठिन
पहुंचना है सबको मंजिल पर अपनी
हो सकते है रास्ते अलग-अलग
परेशानियां, जुदा-जुदा
खुद तो हूं मैं परेशान
आपको भी कर दिया परेशान
लेकिन क्या करूं?
बस यूं ही
आप अपने रास्ते, मैं अपने रास्ते
चलते जा रहे है अनंत की तलाश में
एक-दूसरे के सहयोग प्यार के सहारे.

Views: 410

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 26, 2012 at 10:40pm

वाह आदरणीय हरीश जी, कितनी सरलता से, सब कुछ कह दिया .बधाई.

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 26, 2012 at 3:57pm

हरीश जी बहुत सुंदर कविता जीवन के आयामो को नया रंग देते और समस्याओं से रूबरू कराती रचना। बहुत बहुत बधाइयाँ!

Comment by Rekha Joshi on June 26, 2012 at 3:27pm

समस्या पर समस्या ,यही तो है जिंदगी ,अच्छी रचना ,बधाई 

Comment by Arun Sri on June 26, 2012 at 12:26pm

जीवन के सफर को क्या खूब निरूपित किया आपने ! समस्याए उनसे लड़ना थक जाना और फिर एक दूसरे का सहयोग यही उतार चदाव तो जीवन का दूसरा नाम है !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 26, 2012 at 1:06am

जीवन के ऊहापोह और उसकी कश्मकश को उकेरती रचना के लिये बधाई, हरीशभाईजी.

Comment by UMASHANKER MISHRA on June 25, 2012 at 11:40pm

हरीश भट्ट जी बेहेतरिन

अच्छे विषय पर बहुत अच्छी प्रस्तुति

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 25, 2012 at 10:07pm
आदरणीय हरीश सर, शायद यही जिँदगी है।
Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on June 25, 2012 at 7:01pm

कैदे हयात ओ बन्दे गम असल में दोनों एक हैं... 

अच्छी रचना... सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by Albela Khatri on June 25, 2012 at 5:27pm

सम्मान्य हरीश भट्ट जी,
बहुत  सही और  नपा तुला सच आपने अपने काव्य में प्रस्तुत किया . विडम्बना भी   यही है और  सौभाग्य भी यही है कि  जीवनचक्र  यों ही चलता रहा है और यों ही चलता रहेगा .
___उम्दा कविता के लिए बधाई !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
2 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
12 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
19 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
19 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service