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पेड़ों के झुरमुट में
छुप छुप भरमाता है
मेघों के अंचल में
अटक अटक जाता है
यायावर सा फिरता
 मतवाला चाँद
उषा- रश्मियों से घिर
 धुंधलाता जाता है
 अरुणाभा में, नभ की
डूबता- उतराता है
चलाचली की बेला 
कहता सूरज को विदा 
पवन से पराग की
पीकर हाला चाँद


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Comment

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Comment by Vinita Shukla on September 13, 2012 at 9:15am

धन्यवाद भावेश जी और अशोक जी.

Comment by Ashok Kumar Raktale on September 11, 2012 at 7:17pm

यायावर सा फिरता
 मतवाला चाँद

वाह! आद. बहुत सुन्दर रचना और यायावरी करता चाँद.बधाई.

Comment by Bhawesh Rajpal on September 10, 2012 at 3:34pm

Good !

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