For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

और कितनी है जुदाई पता तो चले
वो मेरी है या पराई, पता तो चले

यूं बहारों पे कब्ज़ा यूं फिजाओं पे हुक्म
अदा ये किसने सिखाई पता तो चले

कँवल खिलने लगे अब्र जलने लगे
किसने ले ली अंगडाई पता तो चले

ये किसने छुआ है, ये किसका नशा है
ये कली क्यों बलखाई पता तो चले

चाँद खिलने लगा गुल महक से गये
मेहँदी किसने रचाई पता तो चले

खोलकर आज गेसू वो मुस्कुरा गये
मौत किसपे है आई पता तो चले

गनीमत यही उन्हें मुहब्बत तो हुई
कुछ उन्हें भी तन्हाई पता तो चले

-पुष्यमित्र उपाध्याय

Views: 491

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr.Ajay Khare on December 13, 2012 at 1:42pm

bahut sunder gajal he badhai 

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 13, 2012 at 1:38pm

पुष्यमित्र उपाध्याय जी आप जब भी आते हैं कुछ नया लाते हैं जवाब नहीं आपका खूबसूरत ग़ज़ल मित्र ढेरों बधाइयाँ

यूं बहारों पे कब्ज़ा यूं फिजाओं पे हुक्म

अदा ये किसने सिखाई पता तो चले         वाह क्या बात है

 

Comment by Pushyamitra Upadhyay on December 13, 2012 at 11:45am

आदरणीय गणेश सर, सुमन दीदी, अजय सर, महिमा दीदी...आप सभी का आशीष पाकर अभिभूत हूँ अनुज का प्रणाम स्वीकार कीजिये...

Comment by MAHIMA SHREE on December 13, 2012 at 10:54am

कँवल खिलने लगे अब्र जलने लगे
किसने ले ली अंगडाई पता तो चले

ये किसने छुआ है, ये किसका नशा है
ये कली क्यों बलखाई पता तो चले

चाँद खिलने लगा गुल महक से गये
मेहँदी किसने रचाई पता तो चले....

सुंदर अभिवयक्ति!!!!!

पुष्यमित्र जी बधाई स्वीकार करें

Comment by SUMAN MISHRA on December 12, 2012 at 11:27pm

सच्ची सच्ची कहा , की गजल अच्छी है आपकी
हमारी दाद कबूलें, जरा पता तो चले ..


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 12, 2012 at 8:21pm

अच्छी ग़ज़ल, दाद कुबूल कर लेंगें कृपया |

Comment by ajay sharma on December 12, 2012 at 7:30pm

ये किसने छुआ है, ये किसका नशा है
ये कली क्यों बलखाई पता तो चले A -----------nitant maulik bhanvo ka sangrahan kiya hai is rachna me ,,,dili mubaraqbad    

Comment by Pushyamitra Upadhyay on December 12, 2012 at 6:57pm

saadar aabhar prachi didi....rajesh sir....


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 12, 2012 at 5:39pm

मन में नाज़ुक भावनाओं के कोमल सवालों के जवाब का इंतज़ार करती सुन्दर ग़ज़ल 

हार्दिक बधाई प्रिय पुष्यमित्र जी 

Comment by राजेश 'मृदु' on December 12, 2012 at 5:28pm

बड़ी नाजुक सी गजल कही है पुष्‍यमित्र जी, बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service