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खुदगर्जी


मेरा जन्म, हर्सौल्लास, जलसा
मां बाबू जी मुराद पूरी, खुशियाँ, चर्मोत्कर्ष
लालन पालन, उत्कर्ष
हर ख़ुशी, मुहैया
हट पूरी ,हर हाल में
मां कई रातें जागी, में सोया
मां सोते से जागी, में रोया
बाबू जी नई स्फूर्ति, उत्साह से ओतप्रोत

में प्रेरणास्रोत
सने सने मेरी बढती काया, बुद्धि,सोच
मेरा जन्म दिन, प्रीतिभोज
बाबू जी का लछ्य मेरी उत्तम शिझा
उनकी अग्निपरीझा
घरेलु व्यय में कटोती, संघर्ष, कर्ज
उनका फर्ज
मेरी नोकरी, महानगर, चकाचोंद
जीवन शेली पाश्चात्य, मायावी,
अहसास बिलकुल अनूठा
अतीत से भिन्न
भूला अभिन्न
एकाकीपन महिलामित्र, दोस्ती ,प्यार ,शादी,
जो होना था हुआ
अहम् न थी मां बाबू जी की दुआ
उनकी राय शुमारी मनमसोश्कर
शायद इसी दिन के लिए बड़ा किया पालपोष कर
अतीत में झाँका तो पाया
उजड़ा गाँव ,खंडहर मकान, मां बाबू जी बेहाल
मेरा अतीत वर्तमान आकाश पाताल
अम्मा बाबू जी की सेवा का सिर्फ विचार
आग्रह किया साथ चलने का
डरे मन से कहीं हाँ न कर दे
किन्तु उनके उसूल
शहरी वाताबरण उनकी सेहत के लिए प्रतिकूल
अत कुछ पेसे कपडे देकर उल्टा भागा
घडियाली आंसूं बहाए में अभागा
अहसास श्रवनकुमार फर्ज की इन्तहां
फिर भी दिल में टीस
मन खिन्न
किन्तु झटक दिया अतीत अपनो को
ओड़ ली खुदगर्जी बेशर्मी अह्शानफरामोशी
और गले लगा लिया वर्तमान को
Dr.Ajay Khare Aahat

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